मैं कवी हूँ – विकास कुमार

मैं कवी हूँ
मैं तुमको हमेशा ताली बजाने के लिए नहीं कहूंगा,
और ना ही मैं तुमको हसाऊंगा ।
ना ही कविता का काफिया मिलाऊँगा ।
आज में बस शब्दों को एकता की माला में   पिरोऊंगा ,
आज जो तुम्हारे कृत्य  हैं उसमें हास्य कहाँ
उसमें ताली बजाने की गुंजाइश  कहाँ ,
आज मै केवल अपने  जज्बातों को तुम्हारे जज्बातो पर उड़ेलूँगा.
और देखूँगा की इस अभिक्रिया में इन  जज्बातों का लिटमस लाल होता है , या नीला
या यह हमेशा की तरह सफेद का सफेद ही रहता है,
कल हो सकता है मैं रहूँ या न रहूँ,
और कल आप हों या न हों ,
पर हमारे नथुनों में आती जाती वायु .का वेग कल भी होगा।
 और इन आती जाती साँसों का वेग आंकलित करेगा,
हमारी हस्ती को, हमारे चरित्र को, हमारी संततियों को,
यही है जो हमसे हमारे इंसा होने का हिसाब माँगेगा ,
क्योकि जब भी तुम्हारी साँसों का वेग बढ़ा है,
तुम जीवन के प्रकाश से म्रत्यू के तम की ओर बढ़े चले  हो,
और इंसान से हिंसक जानवर हो गए हो।
जब हम नहीं होंगे तब ये वायु का वेग ही होगा,
जो हमें हमारे मानव होने का अहसास कराएगा।
तुम यदि इन आती जाती सांसो का मोल जान पाए
तो ही महसूस कर पाओगे उस सृजन  को जो है तुम्हारे भीतर,
 तुम्हारा कण-कण , रोम रोम इस सर्जन का कर्जदार है
तुम्हारी हर सांस कुछ कहती है, कुछ आवाज देती है
पहचान पाए तो पा सकोगे उस अम्रत्व को ,
उस कस्तूरी को जो है तुम्हारे ही  भीतर
इन आती जाती सांसो के रूप में तुमसे कल भी कुछ कहती थी
आज भी कुछ कहती है,
 ये कल भी तुम्हें तुम्हारे क्षणिक अस्तित्व का भान कराती रहेगी ||
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कवि – विकास कुमार

यह कविता हमारे कवि मंडली के नवकवि विकास कुमार जी की है । वह वित्त मंत्रालय नार्थ ब्लाक दिल्ली में सहायक अनुभाग अधिकारी के पद पर कार्यरत हैं । उनकी दैनिंदिनी में कभी कभी  उन्हें लिखने का भी समय मिल जाता है । वैसे तो उनका लेखन किसी वस्तु विशेष के बारे में नहीं रहता मगर न चाहते हुए भी आप उनके लेखन में उनके स्वयं के जीवन अनुभव को महसूस कर सकते हैं । हम आशा करते हैं की आपको उनकी ये कविता पसंद आएगी ।

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