प्रश्नों को ,
दायरे में ही रहने दो,
जो कहते हैं हम
वही तुम होने दो।
पथ्थरों को,
पूजती है दुनिया,
तो क्या——-
इंसान जो पथ्थर हैं
पथ्थर ही रहने दो।
चलेंगे बाण आसमानों में
जख्मी होएगें
दिल गैरों के
होने दो।
बेहिसाब कर ली है
मोहब्बत हमने भी सदियों से
अब दुश्मनी भी
बेहिसाब होने दो।
कल जिंदगी फुसफुसाई थी
मेरे कानों में
बहुत हो गया खेल
अब जमाने में
मौत है जालिम
दो दो हाथ
होने दो।

यह कविता हमारे कवि मंडली के नवकवि विकास कुमार जी की है । वह वित्त मंत्रालय नार्थ ब्लाक दिल्ली में सहायक अनुभाग अधिकारी के पद पर कार्यरत हैं । उनकी दैनिंदिनी में कभी कभी उन्हें लिखने का भी समय मिल जाता है । वैसे तो उनका लेखन किसी वस्तु विशेष के बारे में नहीं रहता मगर न चाहते हुए भी आप उनके लेखन में उनके स्वयं के जीवन अनुभव को महसूस कर सकते हैं । हम आशा करते हैं की आपको उनकी ये कविता पसंद आएगी ।
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नीम से होकर (शीघ्र प्रकाशित होगी)