इन नयनों के जंगल मेँ
एक बावरी लड़की रहती है
छूकर कोमल होठों को
अधरों की प्यास बुझाती है
हर शख्स शहर में दीवाना सा
हर नुक्कड़ पर अब चर्चा है
ये जुल्फ घनेरी रात अंधेरी
या रात में चांद का चर्चा है
जब बात बढ़ी तो दिल धड़का
औऱ सपनों की नदियाँ भ निकलीं
सागर से मिलने को रातें
निशीथ बाहों में जा सिमटी
हर फूल कली मुस्काती है
वह दुल्हन सी शर्माती है
कम्पित होठों पर नाम मेरा
अधरों पर सुर्खी छाती है
फिर इशक के चर्चे आम हुए
हम शहर गाम बदनाम हुए
जाम उठे मयखानों में
हर लब पर तेरे नाम हुए।

यह कविता हमारे कवि मंडली के नवकवि विकास कुमार जी की है । वह वित्त मंत्रालय नार्थ ब्लाक दिल्ली में सहायक अनुभाग अधिकारी के पद पर कार्यरत हैं । उनकी दैनिंदिनी में कभी कभी उन्हें लिखने का भी समय मिल जाता है । वैसे तो उनका लेखन किसी वस्तु विशेष के बारे में नहीं रहता मगर न चाहते हुए भी आप उनके लेखन में उनके स्वयं के जीवन अनुभव को महसूस कर सकते हैं । हम आशा करते हैं की आपको उनकी ये कविता पसंद आएगी ।
विकास कुमार द्वारा लिखी अन्य रचनाएँ
-
अधूरे से हम
-
आग की फसल
-
दुआ करो
-
अन्धा कौन ?
-
उस रात तुम आई थीं प्रिये
-
तुम मत भूलना उनको
-
बजट
-
मैं कवी हूँ
-
हम बोलते नहीं
-
दो गज
-
जिंदगी
-
बावरी लड़की
-
चुप हूँ
-
मेरा देश
-
धधक पौरुष की
-
शून्य
-
नीम से होकर
8 thoughts on “बावरी लड़की – विकास कुमार”