हम बोलते नहीं – विकास कुमार

अब ये किसने कहा हम बोलते नहीं
सहाब तुम प्यार तो करो
हम बोलेंगे भी, तोड़ेंगे भी
समाज को भी, कौमी एकता को भी और हड्डियों को भी
तुम नहीं जानते हमारी भावनाएं
यह सड़क पर होते बलात्कार,
कमजोर पर होते वार,
भूखे से  मरते कुछ लाचार,
या आइसिस में जाते नॉनिहाल,
से आहत नहीं होती
ये बिल्कुल कांच सी है -सहाब
किसी ने प्यार किया नहीं की टूट जाती हैं।
हमारी सभ्यता रही होगी राधा -कृष्ण की
हमने सुनी होंगी कहानी हीरे रांझा की
क्या प्यार किया था सहाब।
पर उनको भी तो किसी ने रोका था,
उनके प्यार पर भी तो पाबंदी थी,
तभी तो वो लोग इतना मशहूर हुए
एक आप हैं कि उनके फेमस होने में
हमारा अंशदान स्वीकारते ही नहीं।
पर आज समस्याए दूसरी हैं
आज डर लगता है कहीं प्यार की गर्मी से
ग्लोबल वॉर्मिंग की समस्या न उतपन्न हो जाये
ये भावनाएं कांच सी हैं
जब सड़क पर होती है छीना झपटी
बत्तमीजियाँ, फब्तियां , कमजोर पर प्रहार
यही कांच सी भावनाएं काम आती हैं
बनजाती हैं चश्मा
देखती हैं टुकर टुकर
पर आहत नहीं होती
नहीं आता हिन्दू का हिंदुत्व
मुसलमान का इस्लाम खतरे में।
प्यार से ही खतरा है सहाब
अगर सब प्यार करेंगे तो
जनसंख्या नियंत्रण कैसे होगा?
रोजगार कहाँ से आएगा?
धर्म कौन चलाएगा?
फिर हमको भी तो फॉलोअर्स चाहिए
हम भी देशभक्त हैं
देश की समस्यओं को बढाने में
नेताओं को नए मुद्दे देने में
चैनलों को सनसनी देने में
हमारा भी योगदान है
एक आप हैं कि हमारा योगदान
स्वीकारते ही नहीं।
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कवि – विकास कुमार

यह कविता हमारे कवि मंडली के नवकवि विकास कुमार जी की है । वह वित्त मंत्रालय नार्थ ब्लाक दिल्ली में सहायक अनुभाग अधिकारी के पद पर कार्यरत हैं । उनकी दैनिंदिनी में कभी कभी  उन्हें लिखने का भी समय मिल जाता है । वैसे तो उनका लेखन किसी वस्तु विशेष के बारे में नहीं रहता मगर न चाहते हुए भी आप उनके लेखन में उनके स्वयं के जीवन अनुभव को महसूस कर सकते हैं । हम आशा करते हैं की आपको उनकी ये कविता पसंद आएगी ।

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