वो भी सरहाने लगे अरबाबे-फ़न[1] के बाद ।
दादे-सुख़न[2] मिली मुझे तर्के-सुखन[3] के बाद ।
दीवानावार चाँद से आगे निकल गए
ठहरा न दिल कहीं भी तेरी अंजुमन के बाद ।
एलाने-हक़ में ख़तरा-ए-दारो-रसन[4] तो है
लेकिन सवाल ये है कि दारो-रसन के बाद ।
होंटों को सी के देखिए पछताइयेगा आप
हंगामे जाग उठते हैं अकसर घुटन के बाद ।
गुरबत[5] की ठंडी छाँव में याद आई है उसकी धूप
क़द्रे-वतन[6] हुई हमें तर्के-वतन[7] के बाद
इंसाँ की ख़ाहिशों की कोई इंतेहा नहीं
दो गज़ ज़मीन चाहिए, दो गज़ कफ़न के बाद ।
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काव्यशाला द्वारा प्रकाशित रचनाएँ
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