पत्थर के ख़ुदा वहाँ भी पाए ।
हम चाँद से आज लौट आए ।
दीवारें तो हर तरफ़ खड़ी हैं
क्या हो गया मेहरबान साए ।
जंगल की हवाएँ आ रही हैं
काग़ज़ का ये शहर उड़ न जाए ।
लैला ने नया जन्म लिया है
है क़ैस[1] कोई जो दिल लगाए ।
है आज ज़मीं का गुस्ले-सेहत[2]
जिस दिल में हो जितना ख़ून लाए ।
सहरा-सहरा[3] लहू के ख़ेमे
फिए प्यासे लबे-फ़रात[4] आए ।
- मजनूँ
- स्वस्थ होने के बाद पहला स्नान
- हर रेगिस्तान में
- फ़रात नदी के तट पर
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पत्थर के ख़ुदा वहाँ भी पाए (शीघ्र प्रकाशित होंगी)
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पत्थर के ख़ुदा वहाँ भी पाये (शीघ्र प्रकाशित होंगी)
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बस इक झिझक है यही (शीघ्र प्रकाशित होंगी)
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लश्कर के ज़ुल्म (शीघ्र प्रकाशित होंगी)
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लाई फिर इक लग़्ज़िशे-मस्ताना तेरे शहर में (शीघ्र प्रकाशित होंगी)
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सुना करो मेरी जाँ (शीघ्र प्रकाशित होंगी)
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सोमनाथ (शीघ्र प्रकाशित होंगी)
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नेहरू
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