मैं यह सोचकर उसके दर से उठा था
कि वह रोक लेगी मना लेगी मुझको ।
हवाओं में लहराता आता था दामन
कि दामन पकड़कर बिठा लेगी मुझको ।
क़दम ऐसे अंदाज़ से उठ रहे थे
कि आवाज़ देकर बुला लेगी मुझको ।
कि उसने रोका न मुझको मनाया
न दामन ही पकड़ा न मुझको बिठाया ।
न आवाज़ ही दी न मुझको बुलाया
मैं आहिस्ता-आहिस्ता बढ़ता ही आया ।
यहाँ तक कि उससे जुदा हो गया मैं
जुदा हो गया मैं, जुदा हो गया मैं ।
कैफ़ि आज़मी जी की अन्य प्रसिध रचनाएँ
-
झुकी झुकी सी नज़र
-
कोहरे के खेत
-
दोशीज़ा मालन
-
मेरा माज़ी मेरे काँधे पर
-
ताजमहल
-
दूसरा बनबास
-
तलाश
-
तसव्वुर
-
दाएरा
-
नया हुस्न
-
नई सुब्ह
-
नए ख़ाके
-
प्यार का जश्न
-
अंदेशे
-
अब तुम आग़ोश-ए-तसव्वुर
-
अज़ा में बहते थे आँसू यहाँ
-
आज की रात बहुत गर्म हवा चलती है
-
आज सोचा तो आँसू भर आए
-
आवारा सजदे
-
इब्ने-मरियम
-
गुरुदत्त के लिए नोहा
-
इतना तो ज़िन्दगी में किसी की ख़लल पड़े
-
एक बोसा
-
ऐ सबा! लौट के किस शहर से तू आती है?
-
औरत
-
कभी जमूद कभी सिर्फ़ इंतिशार सा है
-
कर चले हम फ़िदा (शीघ्र प्रकाशित होंगी)
-
काफ़िला तो चले
-
कोई ये कैसे बता ये कि वो तन्हा क्यों हैं
-
खार-ओ-खस तो उठें, रास्ता तो चले (शीघ्र प्रकाशित होंगी)
-
ज़िन्दगी
-
चरागाँ
-
तुम (शीघ्र प्रकाशित होंगी)
-
तुम इतना जो मुस्कुरा रहे हो (शीघ्र प्रकाशित होंगी)
-
तुम परेशां न हो (शीघ्र प्रकाशित होंगी)
-
दस्तूर क्या ये शहरे-सितमगर के हो गए (शीघ्र प्रकाशित होंगी)
-
दायरा (शीघ्र प्रकाशित होंगी)
-
दो-पहर (शीघ्र प्रकाशित होंगी)
-
दोशीज़ा मालिन (शीघ्र प्रकाशित होंगी)
-
नज़राना (शीघ्र प्रकाशित होंगी)
-
झुकी झुकी सी नज़र बेक़रार है कि नहीं (शीघ्र प्रकाशित होंगी)
-
मकान (शीघ्र प्रकाशित होंगी)
-
मशवरे (शीघ्र प्रकाशित होंगी)
-
मेरे दिल में तू ही तू है (शीघ्र प्रकाशित होंगी)
-
मैं ढूँढता हूँ जिसे वो जहाँ नहीं मिलता (शीघ्र प्रकाशित होंगी)
-
मैं यह सोचकर उसके दर से उठा था (शीघ्र प्रकाशित होंगी)
-
पत्थर के ख़ुदा वहाँ भी पाए (शीघ्र प्रकाशित होंगी)
-
पशेमानी (शीघ्र प्रकाशित होंगी)
-
पहला सलाम (शीघ्र प्रकाशित होंगी)
-
पत्थर के ख़ुदा वहाँ भी पाये (शीघ्र प्रकाशित होंगी)
-
बस इक झिझक है यही (शीघ्र प्रकाशित होंगी)
-
लश्कर के ज़ुल्म (शीघ्र प्रकाशित होंगी)
-
लाई फिर इक लग़्ज़िशे-मस्ताना तेरे शहर में (शीघ्र प्रकाशित होंगी)
-
वक्त ने किया क्या हंसी सितम (शीघ्र प्रकाशित होंगी)
-
वतन के लिये (शीघ्र प्रकाशित होंगी)
-
वो कभी धूप कभी छाँव लगे (शीघ्र प्रकाशित होंगी)
-
वो भी सराहने लगे अरबाबे-फ़न के बाद (शीघ्र प्रकाशित होंगी)
-
सदियाँ गुजर गयीं (शीघ्र प्रकाशित होंगी)
-
सुना करो मेरी जाँ (शीघ्र प्रकाशित होंगी)
-
सोमनाथ (शीघ्र प्रकाशित होंगी)
-
शोर यूँ ही न परिंदों ने मचाया होगा (शीघ्र प्रकाशित होंगी)
-
हाथ आकर लगा गया कोई (शीघ्र प्रकाशित होंगी)
-
नेहरू
One thought on “मैं यह सोचकर – कैफ़ि आज़मी”