वो भी सराहने लगे अरबाबे-फ़न के बाद – कैफ़ि आज़मी

वो भी सरहाने लगे अरबाबे-फ़न[1] के बाद ।
दादे-सुख़न[2] मिली मुझे तर्के-सुखन[3] के बाद ।

दीवानावार चाँद से आगे निकल गए
ठहरा न दिल कहीं भी तेरी अंजुमन के बाद ।

एलाने-हक़ में ख़तरा-ए-दारो-रसन[4] तो है
लेकिन सवाल ये है कि दारो-रसन के बाद ।

होंटों को सी के देखिए पछताइयेगा आप
हंगामे जाग उठते हैं अकसर घुटन के बाद ।

गुरबत[5] की ठंडी छाँव में याद आई है उसकी धूप
क़द्रे-वतन[6] हुई हमें तर्के-वतन[7] के बाद

इंसाँ की ख़ाहिशों की कोई इंतेहा नहीं
दो गज़ ज़मीन चाहिए, दो गज़ कफ़न के बाद ।

– कैफ़ि आज़मी

  1.  कलाकारों
  2. कविता की प्रशंसा
  3. लिखना छोड़ना
  4. फाँसी का ख़तरा
  5. परदेश
  6. वतन की क़द्र
  7. वतन छोड़ना

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