मत छुओ इस झील को। कंकड़ी मारो नहीं, पत्तियाँ डारो नहीं, फूल मत बोरो। और कागज की तरी इसमें नहीं छोड़ो।
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दिल्ली – रामधारी सिंह ‘दिनकर’
यह कैसी चांदनी अम के मलिन तमिस्र गगन में कूक रही क्यों नियति व्यंग से इस गोधूलि-लगन में ? मरघट में तू साज रही दिल्ली कैसे श्रृंगार? यह बहार का स्वांग अरी इस उजड़े चमन में!
सजनि दीपक बार ले – महादेवी वर्मा
उर तिमिरमय घर तिमिरमय चल सजनि दीपक बार ले! राह में रो रो गये हैं रात और विहान तेरे काँच से टूटे पड़े यह स्वप्न, भूलें, मान तेरे; फूलप्रिय पथ शूलमय पलकें बिछा सुकुमार ले!
बिना सूई की घड़ियाँ – द्वारिका प्रसाद माहेश्वरी
हलके नीले और राख के से रंग में जो रँगी हुई। है नभ की दीवाल, वहाँ पर गोल घड़ी जो टँगी हुई।। अम्माँ देखो तो वह कितनी सुंदर चाँदी-सी उज्ज्वल। लगता जैसे वाच फैक्ट्री से आई हो अभी निकल।। पर अम्माँ यह घड़ी अजब है,
हम हैं सूरज-चाँद-सितारे – द्वारिका प्रसाद माहेश्वरी
हम हैं सूरज-चाँद-सितारे।। हम नन्हे-नन्हे बालक हैं, जैसे नन्हे-नन्हे रजकण। हम नन्हे-नन्हे बालक हैं, जैसे नन्हे-नन्हे जल-कण। लेकिन हम नन्हे रजकण ही, हैं विशाल पर्वत बन जाते। हम नन्हे जलकण ही,
मैं सुमन हूँ – द्वारिका प्रसाद माहेश्वरी
व्योम के नीचे खुला आवास मेरा; ग्रीष्म, वर्षा, शीत का अभ्यास मेरा; झेलता हूँ मार मारूत की निरंतर, खेलता यों जिंदगी का खेल हंसकर। शूल का दिन रात मेरा साथ किंतु प्रसन्न मन हूँ मैं सुमन हूँ...
यदि होता किन्नर नरेश मैं – द्वारिका प्रसाद माहेश्वरी
यदि होता किन्नर नरेश मैं राज महल में रहता, सोने का सिंहासन होता सिर पर मुकुट चमकता। बंदी जन गुण गाते रहते दरवाजे पर मेरे, प्रतिदिन नौबत बजती रहती संध्या और सवेरे।
हम सब सुमन एक उपवन के – द्वारिका प्रसाद माहेश्वरी
हम सब सुमन एक उपवन के एक हमारी धरती सबकी जिसकी मिट्टी में जन्मे हम मिली एक ही धूप हमें है सींचे गए एक जल से हम। पले हुए हैं झूल-झूल कर पलनों में हम एक पवन के हम सब सुमन एक उपवन के।।
जन्मभूमि – अयोध्या सिंह उपाध्याय ‘हरिऔध’
सुरसरि सी सरि है कहाँ मेरु सुमेर समान। जन्मभूमि सी भू नहीं भूमण्डल में आन।। प्रतिदिन पूजें भाव से चढ़ा भक्ति के फूल। नहीं जन्म भर हम सके जन्मभूमि को भूल।। पग सेवा है जननि की जनजीवन का सार। मिले राजपद भी रहे जन्मभूमि रज प्यार।।
चंदा मामा, आ जाना – द्वारिका प्रसाद माहेश्वरी
चंदा मामा, आ जाना, साथ मुझे कल ले जाना। कल से मेरी छुट्टी है ना आये तो कुट्टी है। चंदा मामा खाते लड्डू, आसमान की थाली में। लेकिन वे पीते हैं पानी आकर मेरी प्याली में।




