सजनि दीपक बार ले – महादेवी वर्मा

उर तिमिरमय घर तिमिरमय चल सजनि दीपक बार ले! राह में रो रो गये हैं रात और विहान तेरे काँच से टूटे पड़े यह  स्वप्न, भूलें, मान तेरे; फूलप्रिय पथ शूलमय पलकें बिछा सुकुमार ले!

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आओ प्यारे तारो आओ – महादेवी वर्मा

आओ, प्यारे तारो आओ तुम्हें झुलाऊँगी झूले में, तुम्हें सुलाऊँगी फूलों में, तुम जुगनू से उड़कर आओ, मेरे आँगन को चमकाओ।

फूल – महादेवी वर्मा

मधुरिमा के, मधु के अवतार सुधा से, सुषमा से, छविमान, आंसुओं में सहमे अभिराम तारकों से हे मूक अजान! सीख कर मुस्काने की बान कहां आऎ हो कोमल प्राण! स्निग्ध रजनी से लेकर हास रूप से भर कर सारे अंग, नये पल्लव का घूंघट डाल अछूता ले अपना मकरंद, ढूढं पाया कैसे यह देश? स्वर्ग के हे मोहक संदेश!

अधिकार – महादेवी वर्मा

वे मुस्काते फूल, नहीं  जिनको आता है मुर्झाना,  वे तारों के दीप, नहीं  जिनको भाता है बुझ जाना;  वे नीलम के मेघ, नहीं  जिनको है घुल जाने की चाह  वह अनन्त रितुराज,नहीं  जिसने देखी जाने की राह| 

सजनि कौन तम में परिचित सा – महादेवी वर्मा

सजनि कौन तम में परिचित सा, सुधि सा, छाया सा, आता? सूने में सस्मित चितवन से जीवन-दीप जला जाता! छू स्मृतियों के बाल जगाता, मूक वेदनायें दुलराता, हृततंत्री में स्वर भर जाता, बंद दृगों में, चूम सजल सपनों के चित्र बना जाता!

दीपक अब रजनी जाती रे – महादेवी वर्मा

जिनके पाषाणी शापों के  तूने जल जल बंध गलाए रंगों की मूठें तारों के  खील वारती आज दिशाएँ तेरी खोई साँस विभा बन भू से नभ तक लहराती रे दीपक अब रजनी जाती रे

क्या पूजन क्या अर्चन रे! – महादेवी वर्मा

उस असीम का सुंदर मंदिर मेरा लघुतम जीवन रे! मेरी श्वासें करती रहतीं नित प्रिय का अभिनंदन रे! पद रज को धोने उमड़े आते लोचन में जल कण रे! अक्षत पुलकित रोम मधुर मेरी पीड़ा का चंदन रे! स्नेह भरा जलता है झिलमिल मेरा यह दीपक मन रे! मेरे दृग के तारक में नव उत्पल का उन्मीलन रे! धूप बने उड़ते जाते हैं प्रतिपल मेरे स्पंदन रे! प्रिय प्रिय जपते अधर ताल देता पलकों का नर्तन रे!

दीप मेरे जल अकम्पित – महादेवी वर्मा

दीप मेरे जल अकम्पित, घुल अचंचल! सिन्धु का उच्छवास घन है, तड़ित, तम का विकल मन है, भीति क्या नभ है व्यथा का आँसुओं से सिक्त अंचल!  स्वर-प्रकम्पित कर दिशायें, मीड़, सब भू की शिरायें, गा रहे आंधी-प्रलय तेरे लिये ही आज मंगल

तितली से – महादेवी वर्मा

मेह बरसने वाला है मेरी खिड़की में आ जा तितली। बाहर जब पर होंगे गीले, धुल जाएँगे रंग सजीले, झड़ जाएगा फूल, न तुझको बचा सकेगा छोटी तितली, खिड़की में तू आ जा तितली!

ठाकुर जी भोले हैं – महादेवी वर्मा

ठंडे पानी से नहलातीं, ठंडा चंदन इन्हें लगातीं, इनका भोग हमें दे जातीं, फिर भी कभी नहीं बोले हैं। माँ के ठाकुर जी भोले हैं।