मैं माध्यम हूँ, मौलिक विचार नहीं,
कनफ़्युशियस ने कहा ।
तो मौलिक विचार कहाँ मिलते हैं,
खिले हुए फूल ही
नए वृन्तों पर
दुबारा खिलते हैं ।
आकाश पूरी तरह
छाना जा चुका है,
जो कुछ जानने योग्य था,
पहले ही जाना जा चुका है ।
जिन प्रश्नों के उत्तर पहले नहीं मिले,
उनका मिलना आज भी मुहाल है ।
चिंतकों का यह हाल है
कि वे पुराने प्रश्नों को
नए ढंग से सजाते हैं
और उन्हें ही उत्तर समझकर
भीतर से फूल जाते हैं ।
मगर यह उत्तर नहीं,
प्रश्नों का हाहाकार है ।
जो सत्य पहले अगोचर था,
वह आज भी तर्कों के पार है ।
रामधारी सिंह ‘दिनकर’ जी द्वारा अन्य रचनाएँ
-
कृष्ण की चेतावनी
-
परम्परा
-
समर शेष है
-
परिचय
-
दिल्ली
-
झील
-
वातायन
-
समुद्र का पानी
-
ध्वज-वंदना
-
आग की भीख
-
बालिका से वधू
-
जियो जियो अय हिन्दुस्तान
-
कुंजी
-
परदेशी
-
एक पत्र
-
एक विलुप्त कविता
-
आशा का दीपक
-
कलम, आज उनकी जय बोल
-
शक्ति और क्षमा
-
हो कहाँ अग्निधर्मा नवीन ऋषियों
-
गीत-अगीत
-
गाँधी
-
लेन-देन
-
निराशावादी
-
रात यों कहने लगा मुझसे गगन का चाँद
-
लोहे के मर्द
-
विजयी के सदृश जियो रे
-
पढ़क्कू की सूझ
-
वीर
-
मनुष्यता
-
पर्वतारोही
-
करघा
-
चांद एक दिन
-
भारत
-
भगवान के डाकिए
-
जब आग लगे
-
लोहे के पेड़ हरे होंगे
-
शोक की संतान
-
जनतन्त्र का जन्म
-
राजा वसन्त वर्षा ऋतुओं की रानी
-
मेरे नगपति! मेरे विशाल!
-
सिपाही
-
रोटी और स्वाधीनता
-
अवकाश वाली सभ्यता
-
व्याल-विजय
-
माध्यम
-
कलम या कि तलवार
-
हमारे कृषक