माथे में सेंदूर पर छोटी
दो बिंदी चमचम-सी,
पपनी पर आँसू की बूँदें
मोती-सी, शबनम-सी।
लदी हुई कलियों में मादक
टहनी एक नरम-सी,
यौवन की विनती-सी भोली,
गुमसुम खड़ी शरम-सी।
पीला चीर, कोर में जिसके
चकमक गोटा-जाली,
चली पिया के गांव उमर के
सोलह फूलों वाली।
पी चुपके आनंद, उदासी
भरे सजल चितवन में,
आँसू में भींगी माया
चुपचाप खड़ी आंगन में।
आँखों में दे आँख हेरती
हैं उसको जब सखियाँ,
मुस्की आ जाती मुख पर,
हँस देती रोती अँखियाँ।
पर, समेट लेती शरमाकर
बिखरी-सी मुस्कान,
मिट्टी उकसाने लगती है
अपराधिनी-समान।
भींग रहा मीठी उमंग से
दिल का कोना-कोना,
भीतर-भीतर हँसी देख लो,
बाहर-बाहर रोना।
तू वह, जो झुरमुट पर आयी
हँसती कनक-कली-सी,
तू वह, जो फूटी शराब की
निर्झरिणी पतली-सी।
तू वह, रचकर जिसे प्रकृति
ने अपना किया सिंगार,
तू वह जो धूसर में आयी
सुबज रंग की धार।
मां की ढीठ दुलार! पिता की
ओ लजवंती भोली,
ले जायेगी हिय की मणि को
अभी पिया की डोली।
कहो, कौन होगी इस घर की
तब शीतल उजियारी?
किसे देख हँस-हँस कर
फूलेगी सरसों की क्यारी?
वृक्ष रीझ कर किसे करेंगे
पहला फल अर्पण-सा?
झुकते किसको देख पोखरा
चमकेगा दर्पण-सा?
किसके बाल ओज भर देंगे
खुलकर मंद पवन में?
पड़ जायेगी जान देखकर
किसको चंद्र-किरन में?
महँ-महँ कर मंजरी गले से
मिल किसको चूमेगी?
कौन खेत में खड़ी फ़सल
की देवी-सी झूमेगी?
बनी फिरेगी कौन बोलती
प्रतिमा हरियाली की?
कौन रूह होगी इस धरती
फल-फूलों वाली की?
हँसकर हृदय पहन लेता जब
कठिन प्रेम-ज़ंजीर,
खुलकर तब बजते न सुहागिन,
पाँवों के मंजीर।
घड़ी गिनी जाती तब निशिदिन
उँगली की पोरों पर,
प्रिय की याद झूलती है
साँसों के हिंडोरों पर।
पलती है दिल का रस पीकर
सबसे प्यारी पीर,
बनती है बिगड़ती रहती
पुतली में तस्वीर।
पड़ जाता चस्का जब मोहक
प्रेम-सुधा पीने का,
सारा स्वाद बदल जाता है
दुनिया में जीने का।
मंगलमय हो पंथ सुहागिन,
यह मेरा वरदान;
हरसिंगार की टहनी-से
फूलें तेरे अरमान।
जगे हृदय को शीतल करने-
वाली मीठी पीर,
निज को डुबो सके निज में,
मन हो इतना गंभीर।
छाया करती रहे सदा
तुझको सुहाग की छाँह,
सुख-दुख में ग्रीवा के नीचे
रहे पिया की बाँह।
पल-पल मंगल-लग्न, ज़िंदगी
के दिन-दिन त्यौहार,
उर का प्रेम फूटकर हो
आँचल में उजली धार।
रामधारी सिंह ‘दिनकर’ जी द्वारा अन्य रचनाएँ
-
कृष्ण की चेतावनी
-
परम्परा
-
समर शेष है
-
परिचय
-
दिल्ली
-
झील
-
वातायन
-
समुद्र का पानी
-
ध्वज-वंदना
-
आग की भीख
-
बालिका से वधू
-
जियो जियो अय हिन्दुस्तान
-
कुंजी
-
परदेशी
-
एक पत्र
-
एक विलुप्त कविता
-
आशा का दीपक
-
कलम, आज उनकी जय बोल
-
शक्ति और क्षमा
-
हो कहाँ अग्निधर्मा नवीन ऋषियों
-
गीत-अगीत
-
गाँधी
-
लेन-देन
-
निराशावादी
-
रात यों कहने लगा मुझसे गगन का चाँद
-
लोहे के मर्द
-
विजयी के सदृश जियो रे
-
पढ़क्कू की सूझ
-
वीर
-
मनुष्यता
-
पर्वतारोही
-
करघा
-
चांद एक दिन
-
भारत
-
भगवान के डाकिए
-
जब आग लगे
-
लोहे के पेड़ हरे होंगे
-
शोक की संतान
-
जनतन्त्र का जन्म
-
राजा वसन्त वर्षा ऋतुओं की रानी
-
मेरे नगपति! मेरे विशाल!
-
सिपाही
-
रोटी और स्वाधीनता
-
अवकाश वाली सभ्यता
-
व्याल-विजय
-
माध्यम
-
कलम या कि तलवार
-
हमारे कृषक
One thought on “बालिका से वधू – रामधारी सिंह ‘दिनकर’”