एक कुसुम कमनीय म्लान हो सूख विखर कर।
पड़ा हुआ था धूल भरा अवनीतल ऊपर।
उसे देख कर एक सुजन का जी भर आया।
वह कातरता सहित वचन यह मुख पर लाया।1।
अहो कुसुम यह सभी बात में परम निराला।
योग्य करों में पड़ा नहीं बन सका न आला।
जैसे ही यह बात कथन उसने कर पाई।
वैसे ही रुचिकरी-उक्ति यह पड़ी सुनाई।2।
देख देख मुख हृदय-हीन-जन अकुलाने से।
दबने छिदने बँधाने बिधाने नुच जाने से।
कहीं भला है अपने रँग में मस्त दिखाना।
अंत-समय हो म्लान विजन-बन में झड़ जाना।3।
कहा सुजन ने कहाँ नहीं दुख-बदन दिखाता।
बन में ही क्या कुसुम नहीं दल से दब जाता।
काँटों से क्या कभी नहीं छिदता बिधाता है।
क्या जालाओं बीच विवश लौं नहिं बँधाता है।4।
कीड़ों से क्या कभी नहीं वह नोचा जाता।
मधुप उसे क्या बार बार नहिं विकल बनाता।
ओले पड़ कर विपत नहीं क्या उस पर ढाते।
चल प्रतिकूल समीर क्या नहीं उसे कँपाते।5।
कहीं भला है अपने रँग में मस्त दिखाना।
पर उससे है भला लोकहित में लग जाना।
मरने को तो सभी एक दिन है मर जाता।
पर मरना कुछ हित करते, है अमर बनाता।6।
यदि बाटिका-प्रसून टूटते ही कुम्हलाता।
छिदते बिधाते बंधान में पड़ते अकुलाता।
कभी नहीं तो राजमुकुट पर शोभा पाता।
न तो चढ़ाया अमरवृन्द के शिर पर जाता।7।
बिकच बदन है विपल काल में भी दिखलाता।
इसीलिए वह विपुल-हृदय में है बस जाता।
देख कठिनता-बदन बदन जिसका कुम्हलाया।
कब वसुधा में सिध्दि समादर उसने पाया।8।
बन-प्रसून-पंखड़ी कभी जो थी छबि थाती।
मिट्टी में है छीज छीज कर मिलती जाती।
यही योग्य कर में पड़ कर उपकारक होती।
रोगी जन का रोग ओषधी बन कर खोती।9।
मिल कर तिल के साथ सुवासित तेल बनाती।
कितने शिर की व्यथा दूर कर के सरसाती।
इस प्रकार वह भले काम ही में लग पाती।
बन-प्रसून की सफल चरम गति भी हो जाती।10।
जो जग-हित पर प्राण निछावर है कर पाता।
जिसका तन है किसी लोक-हित में लग जाता।
वह चाहे तृण तरु खग मृग चाहे होवे नर।
उसका ही है जन्म सफल है वही धन्यतर।11।
अयोध्यासिंहउपाध्याय ‘हरीऔध’ जीकीअन्यप्रसिधरचनायें
-
चंदामामा
-
बंदरऔरमदारी
-
तिनका
-
एकबूँद
-
जागोप्यारे
-
चूँ–चूँ–चूँ–चूँचूहाबोले
-
चमकीलेतारे
-
आरीनींद
-
मीठीबोली
-
कोयल
-
फूलऔरकाँटा
-
आँखकाआँसू
-
कर्मवीर
-
बादल
-
संध्या
-
सरिता
-
अनूठीबातें
-
हमारापतन
-
दमदारदावे
-
विबोधन
-
आँसूऔरआँखें
-
प्यासीआँखें
-
विवशता
-
फूल
-
मतवालीममता
-
निर्ममसंसार
-
अभेदकाभेद
-
प्रार्थना
-
कमनीयकामनाएँ
-
आदर्श
-
गुणगान
-
माता–पिता
-
हमारेवेद
-
पुष्पांजलि
-
उद्बोधन
-
विद्यालय
-
जीवन–मरण
-
परिवर्तन
-
हमेंचाहिए
-
हमेंनहींचाहिए
-
क्याहोगा
-
एकउकताया
-
कुछउलटीसीधीबातें
-
दिलकेफफोले -1
-
अपनेदुखड़े
-
चाहिए
-
उलटी समझ (शीघ्र प्रकाशित होगी)
-
समझ का फेर (शीघ्र प्रकाशित होगी)
-
सेवा (शीघ्र प्रकाशित होगी)
-
सेवा – 1 (शीघ्र प्रकाशित होगी)
-
सुशिक्षा-सोपान (शीघ्र प्रकाशित होगी)
-
भोर का उठना (शीघ्र प्रकाशित होगी)
-
अविनय (शीघ्र प्रकाशित होगी)
-
कुसुम चयन (शीघ्र प्रकाशित होगी)
-
बन-कुसुम (शीघ्र प्रकाशित होगी)
-
कृतज्ञता (शीघ्र प्रकाशित होगी)
-
एक काठ का टुकड़ा (शीघ्र प्रकाशित होगी)
-
नादान (शीघ्र प्रकाशित होगी)
-
भाषा (शीघ्र प्रकाशित होगी)
-
हिन्दी भाषा (शीघ्र प्रकाशित होगी)
-
उद्बोधन – 1 (शीघ्र प्रकाशित होगी)
-
अभिनव कला (शीघ्र प्रकाशित होगी)
-
उलहना (शीघ्र प्रकाशित होगी)
-
आशालता (शीघ्र प्रकाशित होगी)
-
एक विनय (शीघ्र प्रकाशित होगी)
-
वक्तव्य (शीघ्र प्रकाशित होगी)
-
भगवती भागीरथी (शीघ्र प्रकाशित होगी)
-
पुण्यसलिला (शीघ्र प्रकाशित होगी)
-
गौरव गान (शीघ्र प्रकाशित होगी)
-
आँसू (शीघ्र प्रकाशित होगी)
-
आती है (शीघ्र प्रकाशित होगी)
-
घर देखो भालो (शीघ्र प्रकाशित होगी)
-
अपने को न भूलें (शीघ्र प्रकाशित होगी)
-
पूर्वगौरव (शीघ्र प्रकाशित होगी)
-
दमदार दावे (शीघ्र प्रकाशित होगी)
-
क्या से क्या (शीघ्र प्रकाशित होगी)
-
लानतान (शीघ्र प्रकाशित होगी)
-
प्रेम (शीघ्र प्रकाशित होगी)
-
मांगलिक पद्य (शीघ्र प्रकाशित होगी)
-
बांछा (शीघ्र प्रकाशित होगी)
-
जीवन (शीघ्र प्रकाशित होगी)
-
कविकीर्ति (शीघ्र प्रकाशित होगी)
-
निराला रंग (शीघ्र प्रकाशित होगी)
-
चतुर नेता (शीघ्र प्रकाशित होगी)
-
माधुरी (शीघ्र प्रकाशित होगी)
-
बनलता (शीघ्र प्रकाशित होगी)
-
ललितललाम (शीघ्र प्रकाशित होगी)
-
मयंक (शीघ्र प्रकाशित होगी)
-
खद्योत (शीघ्र प्रकाशित होगी)
-
ललना-लाभ (शीघ्र प्रकाशित होगी)
-
जुगनू (शीघ्र प्रकाशित होगी)
-
विषमता (शीघ्र प्रकाशित होगी)
-
घनश्याम (शीघ्र प्रकाशित होगी)
-
विकच वदन (शीघ्र प्रकाशित होगी)
-
मर्म-व्यथा (शीघ्र प्रकाशित होगी)
-
मनोव्यथा – 1 (शीघ्र प्रकाशित होगी)
-
स्वागत (शीघ्र प्रकाशित होगी)
-
जन्मभूमि (शीघ्र प्रकाशित होगी)