देश को जिस ने जगाया जगे सोने न दिया।
आग घर घर में बुरी फूट को बोने न दिया।1।
है वही बीर पिया दूध उसी ने माँ का।
जाति को जिसने जिगर थाम के रोने न दिया।2।
बन गये भोले बहुत, अपनी भलाई भूली।
है इसी भूल ने अब तक भला होने न दिया।3।
बार से कैसे दुखों के न भला दब जाते।
ऐब अपना हमें अदबार ने खोने न दिया।4।
किस तरह बात बने क्यों न दबा अनबन ले।
प्यार का बोझ बनावट ने तो ढोने न दिया।5।
हो सके मेल क्यों हम कैसे गले मिल पावें।
मैल जी का बुरे मैलान ने खोने न दिया।6।
तो किसी काम की रंगत न रही जो उसने।
भाव रंगों में उमंगों को भिगोने न दिया।7।
लाल माई का हमें लोग कहेंगे कैसे।
प्रेम आँसू ने अगर मोती पिरोने न दिया।8।
– अयोध्या सिंह उपाध्याय “हरीऔध”
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