वर-विवेक कर दान सकल-अविवेक निवारे।
दूर करे अविनार सुचारु विचार प्रचारे।
सहज-सुतति को बितर कुमति-कालिमा नसावे।
करे कुरुचि को विफल सुरुचि को सफल बनावे।
भावुक-मन-सुभवन में रहे प्रतिभा-प्रभा पसारती।
भव-अनुपम-भावों से भरित भारत-भूतल-भारती।1।
प्यारी न्यारी प्रभु-पद-रता कान्त चिन्ता उपेता।
पाई जावे परम-मधुरा मानवी-प्रीति पूता।
सद्भावों से विलस सरसे सारभूता दिखावे।
होवे सारे रुचिर रस से सिक्त साहित्य सत्ता।2।
कुफल ‘फूल’ कदापि न दे सकें।
फल भले फल कामुक को मिलें।
विफलता विफला बनती रहे।
सफलता कृति को सफला करे।3।
नयन हों हित अंजन से अंजे।
विनय हो मन मधय विराजती।
रत रहें जन-रंजन में सदा।
रुचि रहे जगतीतल रंजिनी।4।
मधुरिमा-मय हो बचनावली।
बहु मनोहर भाव समूह हों।
हृदय में बिलसे हितकारिता।
भरित मानवता मन में रहे।5।
– अयोध्या सिंह उपाध्याय “हरीऔध”
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