कभी कोख़ में लड़ी थी वो
कभी कोख़ से लड़ी थी वो,
कभी चंद रुपयों में बिकी थी वो,
कभी दहेज़ के नाम पर ख़रीदी गई थी वो,
कभी अपने ही घर में बंधी थी वो,
तो कभी औरों के घर की बंदी थी वो,
कभी औरों ने उसे सिर का ताज बनाया,
तो कभी अपनों ने उसे नोंच खाया,
कभी कल्पना बन उभरी थी वो,
तो कभी मज़हब के नाम पर,
आसिफा बन कुचली गयी थी वो,
कभी गीता बन बिछड़ी थी वो,
तो कभी निर्भया बन मसल दी गयी थी वो,
फिर भी हर वक़्त हिम्मत से खड़ी थी वो,
कभी देश के लिए लड़ी थी वो,
तो कभी देश से लड़ी थी वो,
जन्म से लेकर मौत तक हर दर्द सही थी वो,
फिर भी घर से लेकर सरकार तक,
हर जगह थी वो,
क्योंकि एक औरत थी वो,
क्योंकि एक औरत थी वो।

यह कविता हमारे कवि मंडली के नवकवि शिवम् कनोजे जी की है ।शिवम् कनोजे मध्य प्रदेश के बालाघाट शहर के रहने वाले हैं । उनका कहना है की उन्होंने बचपन में एक मित्र के साथ लिखने का प्रयास किया था तब पहली अनुभूति हुई थी की वे लिख सकते हैं कुछ सालों बाद एक मित्र की लिखने की सलाह देने पर लिखने का मन बनाया । लेकिन कभी प्रेरणा का अभाव रहा और कभी समय का । कुछ लिख कर मिटा दिया और कभी मिटा हुआ लिखने के प्रयास में असफल रहे । कुछ समय बाद अपनी एक दोस्त के कहने पर लिखना आरंभ किया,वे प्रेम-रिश्ते एवं सामाजिक मुद्दों पर लिखने की रूचि रखते हैं । कॉलेज में दोस्तों के प्रेम-प्रसंग पर कविताएँ लिखने से उत्साहवर्धन हुआ। नमन खंडेलवाल द्वारा दिए गए अवसर के रूप में “इश्क़ ऐ नग़मा” में “प्यार था किसी और से” पहली कविता के रूप में प्रकाशित हुई। शब्दांचल में इनकी कविता “उसूल-ऐ-ज़िंदगी” चयनित की गयी हैं।इनका मानना हैं जो भी चीज़े दिल तक पहुँचती हैं उन्हें पन्नो पर उतार पाने पर ही संतुष्टि की अनुभति होती हैं।
शिवम् कनोजे द्वारा लिखी अन्य रचनाएँ
-
उसूल-ऐ-ज़िंदगी
-
बेनाम रिश्ता
-
उम्मीन्द थी ज़िंदगी से तुम मेरी
-
मैं समझ नहीं पाया
-
आज शर्मसार हूँ
-
क्योंकि एक औरत थी वो