जब हमारे साथी-संगी हमसे छूट जाएँ
जब हमारे हौसलों को दर्द लूट जाएँ
जब हमारे आँसुओं के मेघ टूट जाएँ
उस समय भी रुकना नहीं, चलना चाहिए,
टूटे पंख से नदी की धार ने कहा ।
जब दुनिया रात के लिफाफे में बंद हो
जब तम में भटक रही फूलों की गंध हो
जब भूखे आदमियों औ’ कुत्तों में द्वन्द हो
उस समय भी बुझना नहीं जलना चाहिए,
बुझते हुए दीप से तूफ़ान ने कहा ।
– रमानाथ अवस्थी
रमानाथ अवस्थी जी की अन्य प्रसिध रचनाएँ
- बजी कहीं शहनाई सारी रात
- करूँ क्या
- वे दिन (शीघ्र प्रकाशित होगी)
- उस समय भी (शीघ्र प्रकाशित होगी)
- बुलावा (शीघ्र प्रकाशित होगी)
- ऐसी तो कोई बात नहीं (शीघ्र प्रकाशित होगी)
- सौ बातों की एक बात है (शीघ्र प्रकाशित होगी)
- हम-तुम (शीघ्र प्रकाशित होगी)
- मेरी रचना के अर्थ (शीघ्र प्रकाशित होगी)
- मन चाहिए (शीघ्र प्रकाशित होगी)
- सदा बरसने वाला मेघ (शीघ्र प्रकाशित होगी)
- मेरे पंख कट गए हैं (शीघ्र प्रकाशित होगी)
- सो न सका (शीघ्र प्रकाशित होगी)
- लाचारी (शीघ्र प्रकाशित होगी)
- अंधेरे का सफ़र (शीघ्र प्रकाशित होगी)
- याद बन-बनकर गगन पर (शीघ्र प्रकाशित होगी)
- असम्भव (शीघ्र प्रकाशित होगी)
- इन्सान (शीघ्र प्रकाशित होगी)
- कभी कभी (शीघ्र प्रकाशित होगी)
- चंदन गंध (शीघ्र प्रकाशित होगी)
- चुप रहिए (शीघ्र प्रकाशित होगी)
- मन (शीघ्र प्रकाशित होगी)
- रात की बात (शीघ्र प्रकाशित होगी)
- जाना है दूर (शीघ्र प्रकाशित होगी)
- जिसे कुछ नहीं चाहिए (शीघ्र प्रकाशित होगी)
- वह आग न जलने देना (शीघ्र प्रकाशित होगी)
- याद तुम्हारी आई सारी रात (शीघ्र प्रकाशित होगी)
- वह एक दर्पण चाहिए (शीघ्र प्रकाशित होगी)