एक उम्र के बाद रोया नहीं जाता – विकाश कुमार

एक उम्र के बाद रोया नहीं जाता
आँख में रहता है अश्क़, ज़ाया नहीं जाता

नींद आती थी कभी अब आती नहीं
एक उम्र हुयी ख़्वाबों से वो साया नहीं जाता

घर चलाने में आरज़ुएँ बिकती रहीं लेकिन
ख़्वाबों को बेच कर कुछ कमाया नहीं जाता

सच कहाँ छूटा झूठ कहाँ से शुरू हुआ
दोनो में भेद अब बताया नहीं जाता

वह शक्स कभी जो हमशक्ल था
आइने में आजकल पाया नहीं जाता

– विकाश कुमार

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