तेरी निगाहों ने मुझे तेरी चौखट पर पकड़ा
मैंने तेरे इश्क़ से बस बचकर निकलने ही वाला था
तूने आकर फिर से मेरे ज़ख़्म हरे कर दिए
मेरा वक़्त मेरे ज़ख़्म बस भरने ही वाला था
तब उमीदों ने साथ छोड़ा मेरा
साहिल पे मैं जब बस उतरने ही वाला था
अपनी लकीरें ही हौसले फीका ग़र गयीं
मैं तेरे ख़्वाबों में रंग बस भरने ही वाला था
मेरे दिए मेरी हिम्मत की मूँडेरो पर हैं
मैं कब नसीबों की हवाओं से डरने ही वाला था
- घर लौटने में अब ज़माने निकल जाएँगे
- सानवी सरीखी
- कुछ नहीं…
- लेख – काव्य की संरचना
- कुछ बातें हैं…
- हम बे-शहर बे-सहर ही सही
- आइना टाल देता है
- चलते हैं घड़ी के काँटे
- साँझ हुई परदेस में
- मेरे बच्चे अब बड़े हो गए हैं
- शायद मैं कभी समझा नहीं पाउँगा
- एक उम्र के बाद रोया नहीं जाता
- दुनिया को जला फ़ना कर दे
- फिर से एक बार मुझे भुला कर देखिए
- तेरी निगाहों ने