मोम को आग लगाकर कर देखिए
मुझे कभी तो खुद के बराबर देखिए
कभी छुप के देखिए मेरे ज़ख्मों को
कभी खुद के ज़ख़्म दिखाकर देखिए
मैंने देखा है मय के पर्दे से जमाने को
होश उड़ जायें ग़र होश में आकर देखिए
बहुत बेबस सा दिखता है ग़ुरूर आइने में मेरा
मेरी माने तो आप भी आइने घुमाकर देखिए
मैंने सुना है की तेज है तेरा आफ़ताब जैसा
मुझे भी अपनी रहमत में जलाकर देखिए
कभी पहले भी की थी कोशिश सुना था मैंने
चलो फिर से एक बार मुझे भुला कर देखिए
- घर लौटने में अब ज़माने निकल जाएँगे
- सानवी सरीखी
- कुछ नहीं…
- लेख – काव्य की संरचना
- कुछ बातें हैं…
- हम बे-शहर बे-सहर ही सही
- आइना टाल देता है
- चलते हैं घड़ी के काँटे
- साँझ हुई परदेस में
- मेरे बच्चे अब बड़े हो गए हैं
- शायद मैं कभी समझा नहीं पाउँगा
- एक उम्र के बाद रोया नहीं जाता
- दुनिया को जला फ़ना कर दे
- फिर से एक बार मुझे भुला कर देखिए
You have a awesome poetry sir.
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