असम्भव – रमानाथ अवस्थी

ऐसा कहीं होता नहीं ऐसा कभी होगा नहीं। धरती जले बरसे न घन, सुलगे चिता झुलसे न तन। औ ज़िंदगी में हों न ग़म। ऐसा कभी होगा नहीं ऐसा कभी होता नहीं।

याद बन-बनकर गगन पर – रमानाथ अवस्थी

याद बन-बनकर गगन पर साँवले घन छा गए हैं ये किसी के प्यार का संदेश लाए या किसी के अश्रु ही परदेश आए । श्याम अंतर में गला शीशा दबाए उठ वियोगिनी देख घर मेहमान आए । धूल धोने पाँव की सागर गगन पर आ गए हैं 

अंधेरे का सफ़र – रमानाथ अवस्थी

तुम्‍हारी चाँदनी का क्‍या करूँ मैं अँधेरे का सफ़र मेरे लिए है किसी गुमनाम के दुख-सा अजाना है सफ़र मेरा पहाड़ी शाम-सा तुमने मुझे वीरान में घेरा तुम्‍हारी सेज को ही क्‍यों सजाऊँ समूचा ही शहर मेरे लिए है

लाचारी – रमानाथ अवस्थी

न जाने क्या लाचारी है आज मन भारी-भारी है हृदय से कहता हूँ कुछ गा प्राण की पीड़ित बीन बजा प्यास की बात न मुँह पर ला यहाँ तो सागर खारी है न जाने क्या लाचारी है आज मन भारी-भारी है

मेरे पंख कट गये – रमानाथ अवस्थी

मेरे पंख कट गये हैं वरना मैं गगन को गाता। कोई मुझे सुनाओ फिर से वही कहानी, कैसे हुई थी मीरा घनश्याम की दीवानी। मीरा के गीत को भी कोई विष रहा सताता।

मैं सदा बरसने वाला मेघ बनूँ – रमानाथ अवस्थी

मैं सदा बरसने वाला मेघ बनूँ तुम कभी न बुझने वाली प्यास बनो । संभव है बिना बुलाए तुम तक आऊँ हो सकता है कुछ कहे बिना फिर जाऊँ यों तो मैं सबको बहला ही लेता हूँ लेकिन अपना परिचय कम ही देता हूँ । मैं बनूँ तुम्हारे मन की सुन्दरता तुम कभी न थकने वाली साँस बनो।

मन चाहिए – रमानाथ अवस्थी

कुछ कर गुज़रने के लिये मौसम नहीं, मन चाहिए ! थककर बैठो नहीं प्रतीक्षा कर रहा कोई कहीं हारे नहीं जब हौसले तब कम हुये सब फासले दूरी कहीं कोई नहीं केवल समर्पण चाहिए 

मेरी रचना के अर्थ – रमानाथ अवस्थी

मेरी रचना के अर्थ बहुत से हैं जो भी तुमसे लग जाए लगा लेना । मैं गीत लुटाता हूँ उन लोगों पर दुनिया में जिनका कोई आधार नहीं मैं आँख मिलाता हूँ उन आँखों से जिनका कोई भी पहरेदार नहीं । आँखों की भाषाएँ तो अनगिन हैं  जो भी सुंदर हो समझा देना

हम-तुम – रमानाथ अवस्थी

जीवन कभी सूना न हो कुछ मैं कहूँ, कुछ तुम कहो। तुमने मुझे अपना लिया यह तो बड़ा अच्छा किया जिस सत्य से मैं दूर था वह पास तुमने ला दिया अब ज़िन्दगी की धार में कुछ मैं बहूँ, कुछ तुम बहो

सौ बातों की एक बात है – रमानाथ अवस्थी

सौ बातों की एक बात है । रोज़ सवेरे रवि आता है दुनिया को दिन दे जाता है लेकिन जब तम इसे निगलता होती जग में किसे विकलता सुख के साथी तो अनगिन हैं लेकिन दुःख के बहुत कठिन हैं सौ बातो की एक बात है |