मेरी रचना के अर्थ बहुत से हैं
जो भी तुमसे लग जाए लगा लेना ।
मैं गीत लुटाता हूँ उन लोगों पर
दुनिया में जिनका कोई आधार नहीं
मैं आँख मिलाता हूँ उन आँखों से
जिनका कोई भी पहरेदार नहीं ।
आँखों की भाषाएँ तो अनगिन हैं
जो भी सुंदर हो समझा देना ।
पूजा करता हूँ उस कमज़ोरी की
जो जीने को मज़बूर कर रही है
मन ऊब रहा है अब उस दुनिया से
जो मुझको तुमसे दूर कर रही है ।
दूरी का दुख बढ़ता ही जाता है
जो भी तुमसे घट जाए घटा लेना ।
कहता है मुझसे उड़ता हुआ धुआँ
रुकने का नाम न ले तू उड़ता जा
संकेत कर रहा नभ वाला घन
प्यासे प्राणों पर मुझ सा गलता जा ।
पर मैं खुद ही प्यासा हूँ मरुथल-सा
यह बात समंदर को समझा देना ।
चाँदनी चढ़ाता हूँ उन चरणों पर
जो अपनी राहें आप बनाते हैं
आवाज़ लगाता हूँ उन गीतों को
जिनको मधुवन में भौंरे गाते हैं ।
मधुवन में सोए गीत हज़ारों हैं
जो भी तुमसे जग जाएँ जगा लेना ।
– रमानाथ अवस्थी
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