तुम्हारी चाँदनी का क्या करूँ मैं
अँधेरे का सफ़र मेरे लिए है
किसी गुमनाम के दुख-सा
अजाना है सफ़र मेरा
पहाड़ी शाम-सा तुमने
मुझे वीरान में घेरा
तुम्हारी सेज को ही क्यों सजाऊँ
समूचा ही शहर मेरे लिए है
थका बादल, किसी सौदामिनी
के साथ सोता है
मगर इंसान थकने पर
बड़ा लाचार होता है
गगन की दामिनी का क्या करूँ मैं
धरा की हर डगर मेरे लिए है
किसी चौरास्ते की रात-सा
मैं सो नहीं पाता
किसी के चाहने पर भी
किसी का हो नहीं पाता
मधुर है प्यार, लेकिन क्या करूँ मैं
जमाने का ज़हर मेरे लिए है
नदी के साथ मैं, पहुँचा
किसी सागर किनारे
गई ख़ुद डूब, मुझ को
छोड़ लहरों के सहारे
निमंत्रण दे रही लहरें करूँ क्या
कहाँ कोई भँवर मेरे लिए है ।
– रमानाथ अवस्थी
रमानाथ अवस्थी जी की अन्य प्रसिध रचनाएँ
-
बजी कहीं शहनाई सारी रात
-
करूँ क्या
-
वे दिन (शीघ्र प्रकाशित होगी)
-
उस समय भी (शीघ्र प्रकाशित होगी)
-
बुलावा (शीघ्र प्रकाशित होगी)
-
ऐसी तो कोई बात नहीं (शीघ्र प्रकाशित होगी)
-
सौ बातों की एक बात है (शीघ्र प्रकाशित होगी)
-
हम-तुम (शीघ्र प्रकाशित होगी)
-
मेरी रचना के अर्थ (शीघ्र प्रकाशित होगी)
-
मन चाहिए (शीघ्र प्रकाशित होगी)
-
सदा बरसने वाला मेघ (शीघ्र प्रकाशित होगी)
-
मेरे पंख कट गए हैं (शीघ्र प्रकाशित होगी)
-
सो न सका (शीघ्र प्रकाशित होगी)
-
लाचारी (शीघ्र प्रकाशित होगी)
-
अंधेरे का सफ़र (शीघ्र प्रकाशित होगी)
-
याद बन-बनकर गगन पर (शीघ्र प्रकाशित होगी)
-
असम्भव (शीघ्र प्रकाशित होगी)
-
इन्सान (शीघ्र प्रकाशित होगी)
-
कभी कभी (शीघ्र प्रकाशित होगी)
-
चंदन गंध (शीघ्र प्रकाशित होगी)
-
चुप रहिए (शीघ्र प्रकाशित होगी)
-
मन (शीघ्र प्रकाशित होगी)
-
रात की बात (शीघ्र प्रकाशित होगी)
-
जाना है दूर (शीघ्र प्रकाशित होगी)
-
जिसे कुछ नहीं चाहिए (शीघ्र प्रकाशित होगी)
-
वह आग न जलने देना (शीघ्र प्रकाशित होगी)
-
याद तुम्हारी आई सारी रात (शीघ्र प्रकाशित होगी)
-
वह एक दर्पण चाहिए (शीघ्र प्रकाशित होगी)