ऐसी तो कोई बात नहीं – रमानाथ अवस्थी

तुमसे भी छिपा सकूँ जो मै ऐसी तो कोई बात नहीं जीवन में | मन दिया तुम्हें मैंने ही अपने मन से रंग दिया तुम्हें मैंने अपने जीवन से बीते सपनो में आए बिना तुम्हारे ऐसी तो कोई रात नहीं जीवन में

बुलावा – रमानाथ अवस्थी

प्यार से मुझको बुलाओगे जहाँ एक क्या सौ बार आऊँगा वहाँ पूछने की है नहीं फ़ुर्सत मुझे कौन हो तुम क्या तुम्हारा नाम है किस लिए मुझको बुलाते हो कहाँ कौन सा मुझसे तुम्हारा काम है

उस समय भी – रमानाथ अवस्थी

जब हमारे साथी-संगी हमसे छूट जाएँ जब हमारे हौसलों को दर्द लूट जाएँ जब हमारे आँसुओं के मेघ टूट जाएँ उस समय भी रुकना नहीं, चलना चाहिए, टूटे पंख से नदी की धार ने कहा ।

सारी रात – रमानाथ अवस्थी

धीरे-धीरे बात करो सारी रात प्यार से । भोर होते चाँद के ही साथ-साथ जाऊँगा हो सका तो शाम को सितारों के संग आऊँगा धीरे-धीरे ताप हरो प्यार के अंगार से | तन का सिंगार तो हज़ार बार होता है किंतु प्यार जीवन में एक बार होता है धीरे-धीरे बूँद चुनो ज़िन्दगी की धार से ।

वे दिन – रमानाथ अवस्थी

याद आते हैं फिर बहुत वे दिन               जो बड़ी मुश्किलों से बीते थे ! शाम अक्सर ही ठहर जाती थी देर तक साथ गुनगुनाती थी ! हम बहुत ख़ुश थे, ख़ुशी के बिन भी चाँदनी रात भर जगाती थी !               हमको मालूम है कि हम कैसे               आग को ओस जैसे पीते थे !

करूँ क्या ? – रमानाथ अवस्थी

सुर सब बेसुरे हुए करूँ क्या ?              उतरे हुए सभी के मुखड़े              सबके पाँव लक्ष्य से उखड़े उखड़ी हुई भ्रष्ट पीढ़ी से विजय-वरण के लिए कहूँ क्या ?              सागर निकले ताल सरीखे              अन्धों को कब आँसू दीखे

बजी कहीं शहनाई सारी रात – रमानाथ अवस्थी

सो न सका कल याद तुम्हारी आई सारी रात और पास ही बजी कहीं शहनाई सारी रात मेरे बहुत चाहने पर भी नींद न मुझ तक आई ज़हर भरी जादूगरनी-सी मुझको लगी जुन्हाई मेरा मस्तक सहला कर बोली मुझसे पुरवाई दूर कहीं दो आँखें भर-भर आई सारी रात और पास ही बजी कहीं शहनाई सारी रात