कभी कोख़ में लड़ी थी वो कभी कोख़ से लड़ी थी वो, कभी चंद रुपयों में बिकी थी वो, कभी दहेज़ के नाम पर ख़रीदी गई थी वो, कभी अपने ही घर में बंधी थी वो, तो कभी औरों के घर की बंदी थी वो, कभी औरों ने उसे सिर का ताज बनाया,
Category: शिवम कनोजे
शिवम् कनोजे मध्य प्रदेश के बालाघाट शहर के रहने वाले हैं । उनका कहना है की उन्होंने बचपन में एक मित्र के साथ लिखने का प्रयास किया था तब पहली अनुभूति हुई थी की वे लिख सकते हैं कुछ सालों बाद एक मित्र की लिखने की सलाह देने पर लिखने का मन बनाया । लेकिन कभी प्रेरणा का अभाव रहा और कभी समय का । कुछ लिख कर मिटा दिया और कभी मिटा हुआ लिखने के प्रयास में असफल रहे । कुछ समय बाद अपनी एक दोस्त के कहने पर लिखना आरंभ किया,वे प्रेम-रिश्ते एवं सामाजिक मुद्दों पर लिखने की रूचि रखते हैं । कॉलेज में दोस्तों के प्रेम-प्रसंग पर कविताएँ लिखने से उत्साहवर्धन हुआ। नमन खंडेलवाल द्वारा दिए गए अवसर के रूप में “इश्क़ ऐ नग़मा” में “प्यार था किसी और से” पहली कविता के रूप में प्रकाशित हुई। शब्दांचल में इनकी कविता “उसूल-ऐ-ज़िंदगी” चयनित की गयी हैं।इनका मानना हैं जो भी चीज़े दिल तक पहुँचती हैं उन्हें पन्नो पर उतार पाने पर ही संतुष्टि की अनुभति होती हैं।
आज शर्मसार हूँ – शिवम कनोजे
हाँ, मैं भारतीय हूँ कभी गर्व था इस बात पर, लेकिन आज शर्मिंदा हूँ, हाँ, कभी गर्व करता था, शहादत पर जवानों की, आज बेमतलब हो गयी वो शहादत, औरों से बचाते रहे,इस देश को, पर अपनों ने ही नोंच खाया, आज शर्मसार हूँ, भारतीय होने पर अपने,
मैं समझ नहीं पाया – शिवम कनोजे
आज मैं किसी से मिला, वो बूढ़ेपन की खीझ थी, या देश पर गुस्सा , मैं समझ नहीं पाया।
उम्मीन्द थी ज़िंदगी से तुम मेरी – शिवम् कनोजे
उम्मीन्द थी ज़िंदगी से तुम मेरी, अब ग़ुरूर हो खुद पर मेरा दर्द था दिल में कुछ मेरे, अब राहत हो दिल की तुम मेरी, दास्तां सुनी थी सच्चे इश्क़ की कुछ, ख़ौफ़नाक थी सारी, सोच बदल दी तुमने मेरी, अब हसीं लगता हैं सब कुछ,
बेनाम रिश्ता – शिवम् कनोजे
यूँ तो वायदे किये थे साथ निभाने के हरदम, उन वायदों ने मुँह फेर लिया, चाहत थी हाथ थामने की उसके , पर उसने हाथ ही यूँ मरोड़ दिया, एक सुकून सा था साथ उसका, आज साथ होना चुभने लगा। कभी दवा थी हर मर्ज़ की वो, आज खुद दर्द बन उभरने लगा।
उसूल-ऐ-ज़िंदगी – शिवम् कनोजे
कुछ ज़िंदगी में अपने होते हैं, तो कुछ ज़िन्दगी के अपने होते हैं, कुछ उसूल समझते है, तो कुछ बे-फ़िज़ूल कहते हैं।

