उम्मीन्द थी ज़िंदगी से तुम मेरी – शिवम् कनोजे

उम्मीन्द थी ज़िंदगी से तुम मेरी,
अब ग़ुरूर हो खुद पर मेरा
दर्द था दिल में कुछ मेरे,
अब राहत हो दिल की तुम मेरी,
दास्तां सुनी थी सच्चे इश्क़ की कुछ,
ख़ौफ़नाक थी सारी,
सोच बदल दी तुमने मेरी,
अब हसीं लगता हैं सब कुछ,
रूठ चूका था ज़िन्दगी से मैं,
खों चूका था सब कुछ,
माँ थी वो मेरी ,
अब तुझमे दिखतीं हैं,
एक राहत बनकर।

अक़्सर आदत होती है लोगों की,
लोरी सुनकर सोने की ,
कश्मकश से भरी है ज़िन्दगी मेरी,
लोरी सुनाये बग़ैर नींद नहीं आती ,
अब किस बात का सुक्रिया अदा करू उस ख़ुदा का,
तेरा दुनिया में आने का या मेरी ज़िन्दगी में।

बस इक गुज़ारिश है तुझसे,
हाथ थाम कर रखना आखिरी सांस तक मेरी,
जो छोड़ दिया तो जीं ना पाऊंगा,
जो मरोड़ दिया तो मरना मुश्क़िल,
बस खो जाना चाहता हूँ इन्हीं,
आँखों में तेरी ,
जो डूब गया तो सँभाल लेना,
अब क्या शिक़वा करू उस ख़ुदा से,
जो तू मिल गयी जिंदगी मिल गयी मुझें।

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नवकवि – शिवम् कनोजे

यह कविता हमारे कवि मंडली के नवकवि शिवम् कनोजे जी की है ।शिवम् कनोजे मध्य प्रदेश के बालाघाट शहर के रहने वाले हैं । उनका कहना है की उन्होंने बचपन में एक मित्र के साथ लिखने का प्रयास किया था तब पहली अनुभूति हुई थी की वे लिख सकते हैं कुछ सालों बाद एक मित्र की लिखने की सलाह देने पर लिखने का मन बनाया । लेकिन कभी प्रेरणा का अभाव रहा और कभी समय का । कुछ लिख कर मिटा दिया और कभी मिटा हुआ लिखने के प्रयास में असफल रहे । कुछ समय बाद अपनी एक दोस्त के कहने पर लिखना आरंभ किया,वे प्रेम-रिश्ते एवं सामाजिक मुद्दों पर लिखने की रूचि रखते हैं । कॉलेज में दोस्तों के प्रेम-प्रसंग पर कविताएँ लिखने से उत्साहवर्धन हुआ। नमन खंडेलवाल द्वारा दिए गए अवसर के रूप में “इश्क़ ऐ नग़मा” में “प्यार था किसी और से” पहली कविता के रूप में प्रकाशित हुई। शब्दांचल में इनकी कविता “उसूल-ऐ-ज़िंदगी” चयनित की गयी हैं।इनका मानना हैं जो भी चीज़े दिल तक पहुँचती हैं उन्हें पन्नो पर उतार पाने पर ही संतुष्टि की अनुभति होती हैं।

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