एक सुकून सा था साथ उसका,
आज साथ होना चुभने लगा
कभी दवा थी हर मर्ज़ की वो,
आज खुद दर्द बन उभरने लगा।
यूँ तो वायदे किये थे साथ निभाने के हरदम,
उन वायदों ने मुँह फेर लिया,
चाहत थी हाथ थामने की उसके ,
पर उसने हाथ ही यूँ मरोड़ दिया,
एक सुकून सा था साथ उसका,
आज साथ होना चुभने लगा।
कभी दवा थी हर मर्ज़ की वो,
आज खुद दर्द बन उभरने लगा।
हर दफ़ा कहती थी वो,
तू ग़ुरूर न सही,
बेशक़ सुकून है मेरा,
सुकून वो छीन गयी,
ग़ुरूर ने साथ छोड़ दिया,
एक सुकून सा था साथ उसका,
आज साथ होना चुभने लगा।
कभी दवा थी हर मर्ज़ की वो,
आज खुद दर्द बन उभरने लगा।
हमारे उस रिश्ते को,
बड़े सलीके से उसने एक नाम दिया,
समझ ही पाया था,
मतलब उस दोस्ती का,
बेवफ़ा बन दोस्ती पर उसने,
साथ न रह पाने का पैग़ाम दिया,
एक सुकून सा था साथ उसका,
आज साथ होना चुभने लगा।
कभी दवा थी हर मर्ज़ की वो,
आज खुद दर्द बन उभरने लगा।
यूँ तो बेपनाह मोहब्बत न सही,
बेहिचक दोस्ती की थी उससे,
खोल दिए थे,सारे राज़,
इस बेबाक ज़िन्दगी के,
उन ताश के पत्तों की तरह,
हम क्वीन समझ बैठे थे जिसे,
हमारी ज़िंदगी की,
वो तो आस्तीन का सांप निकली,
एक सुकून सा था साथ उसका,
आज साथ होना चुभने लगा।
कभी दवा थी हर मर्ज़ की वो,
आज खुद दर्द बन उभरने लगा।
यूँ तो खुशनसीब थे,लोगो की नज़रों में हम,
पूछने पर राज़ उस रिश्ते का,
यूँ ही हम मुस्कुरा से जाते,
ग़ुरूर उस रिश्ते का,
बेबाक बन लोगो को बताते,
हमारे लिए भी एक सपना ही था वो,
बस लोगो की नज़रों में जी गये थे,
यूँ आँखे न संभाल सकी वो बोझ,
खोखलापन उस रिश्ते का,
औरों ने भी भाँप ही लिया,
दर्द उस मुस्कान के पीछे,
एक सुकून सा था साथ उसका,
आज साथ होना चुभने लगा।
कभी दवा थी हर मर्ज़ की वो,
आज खुद दर्द बन उभरने लगा।
लगे रहे बचाने उस रिश्ते को,
जो शायद् कभी बना ही नही,
मेरे लिए सबकुछ कुछ था वह,
उसने क्या था कहकर ठुकरा दिया,
निभा रहे थे जिस बेबुनियादी रिश्ते को,
उस बुनियाद ने साथ छोड़ दिया,
गुरूर था जो इस रिश्ते का,
उस ग़ुरूर ने ही हमे तोड़ दिया,
एक सुकून सा था साथ उसका,
आज साथ होना चुभने लगा।
कभी दवा थी हर मर्ज़ की वो,
आज खुद दर्द बन उभरने लगा।

यह कविता हमारे कवि मंडली के नवकवि शिवम् कनोजे जी की है ।शिवम् कनोजे मध्य प्रदेश के बालाघाट शहर के रहने वाले हैं । उनका कहना है की उन्होंने बचपन में एक मित्र के साथ लिखने का प्रयास किया था तब पहली अनुभूति हुई थी की वे लिख सकते हैं कुछ सालों बाद एक मित्र की लिखने की सलाह देने पर लिखने का मन बनाया । लेकिन कभी प्रेरणा का अभाव रहा और कभी समय का । कुछ लिख कर मिटा दिया और कभी मिटा हुआ लिखने के प्रयास में असफल रहे । कुछ समय बाद अपनी एक दोस्त के कहने पर लिखना आरंभ किया,वे प्रेम-रिश्ते एवं सामाजिक मुद्दों पर लिखने की रूचि रखते हैं । कॉलेज में दोस्तों के प्रेम-प्रसंग पर कविताएँ लिखने से उत्साहवर्धन हुआ। नमन खंडेलवाल द्वारा दिए गए अवसर के रूप में “इश्क़ ऐ नग़मा” में “प्यार था किसी और से” पहली कविता के रूप में प्रकाशित हुई। शब्दांचल में इनकी कविता “उसूल-ऐ-ज़िंदगी” चयनित की गयी हैं।इनका मानना हैं जो भी चीज़े दिल तक पहुँचती हैं उन्हें पन्नो पर उतार पाने पर ही संतुष्टि की अनुभति होती हैं।
शिवम् कनोजे द्वारा लिखी अन्य रचनाएँ
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उसूल-ऐ-ज़िंदगी
- बेनाम रिश्ता
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