कुछ ज़िंदगी में अपने होते हैं,
तो कुछ ज़िन्दगी के अपने होते हैं,
कुछ उसूल समझते है,
तो कुछ बे-फ़िज़ूल कहते हैं।
ये तो दस्तूर हैं ज़िंदगी का,
जो बना है वो बिगड़ेगा,
फिर क्यों निराश हैं तू,
जब जानता था,
जो पास आया,
वो कल बिछड़ेगा।
यूँ न उम्मीन्द लगाया कर औरों से,
ये ग़ैर भी तो कभी अपने थे,
जब वक़्त न लगा ग़ैर बनने में,
फिर क्यों इंतज़ार में है यूँ लौटने के।
जब भी आँसु थे आँखों में,
सिर का ताज़ तुझे बनाया,
गीला कांधा लेकर भी तू,
आँखे यु उनकी सुखाया।
जब आँख भर तेरी आयी,
अपनों ने ठुकराया,
आदत सी है तेरी कहकर,
उन आँसुओ पर व्यंग्य रचाया।
वो तेरा अपना था तो,
उसका भी कोई अपना था,
ग़ैरों से क्या शिकवे करें,
जब अपनों पे ही बोझ था तू,
कुछ खोया था तूने भी,
तो कुछ उसने भी पाया था,
दूर जाकर तू बंदी,
तो उसे सभी ने आज़ाद बताया था।
अधूरी सी हैं कहानी तेरी,
जो खुद में ही क़भी पूरी थी,
कुछ इस नज़्म की तरह,
तो कुछ उन जख़्म की तरह,
ये ज़ागीर हमेशा तेरी थी,
अब बचपना यूँ छोड़कर,
अपने अस्तित्व को पहचान तू,
ना रख उम्मीन्द औरों से,
ख़ुद में ही तज़ुर्बांन तू ।
नवकवि – शिवम् कनोजे
यह कविता हमारे कवि मंडली के नवकवि शिवम् कनोजे जी की है ।शिवम् कनोजे मध्य प्रदेश के बालाघाट शहर के रहने वाले हैं । उनका कहना है की उन्होंने बचपन में एक मित्र के साथ लिखने का प्रयास किया था तब पहली अनुभूति हुई थी की वे लिख सकते हैं कुछ सालों बाद एक मित्र की लिखने की सलाह देने पर लिखने का मन बनाया । लेकिन कभी प्रेरणा का अभाव रहा और कभी समय का । कुछ लिख कर मिटा दिया और कभी मिटा हुआ लिखने के प्रयास में असफल रहे । कुछ समय बाद अपनी एक दोस्त के कहने पर लिखना आरंभ किया,वे प्रेम-रिश्ते एवं सामाजिक मुद्दों पर लिखने की रूचि रखते हैं । कॉलेज में दोस्तों के प्रेम-प्रसंग पर कविताएँ लिखने से उत्साहवर्धन हुआ। नमन खंडेलवाल द्वारा दिए गए अवसर के रूप में “इश्क़ ऐ नग़मा” में “प्यार था किसी और से” पहली कविता के रूप में प्रकाशित हुई। शब्दांचल में इनकी कविता “उसूल-ऐ-ज़िंदगी” चयनित की गयी हैं।इनका मानना हैं जो भी चीज़े दिल तक पहुँचती हैं उन्हें पन्नो पर उतार पाने पर ही संतुष्टि की अनुभति होती हैं।
अति सुंदर ।
मैंने भी बहुत दिनों के बाद कुछ लिखा है। आप कहें तो भेजूँ ?
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