आज मैं किसी से मिला,
वो बूढ़ेपन की खीझ थी,
या देश पर गुस्सा ,
मैं समझ नहीं पाया।
कभी लगा बहुत छोटा हूँ,
इस चीज को समझने के लिए।
कभी लगा अठारह का तो हो चुका हूँ।
अचानक उन्होंने मुझे “मुन्ना” कहकर पुकारा,
लगा जैसे अपने बेटे को पुकार रहे हो,
मुझे भी पापा याद आ गए,
ये उनका मेरे लिए प्यार था,
या अपने बेटो से उम्मीद।
मैं समझ नहीं पाया।।
ऐसा लगा जैसे बहुत दु:ख दिया हैं,
अपने बेटो ने इन्हें,
फिर ख़याल आया,
तो फिर मैं क्या कर रहा हूँ?
मैं समझ नहीं पाया।
उन्होंने हर बात में दी सरकार को गाली,
जो कि थी प्रतिपक्ष वाली।
ये आम आदमी की चिढ़ थी,
या एक बाप की पुकार ,
मैं समझ नहीं पाया।
उन्होंने बुझाया बहुत बेरोज़गार बैठे हैं यहाँ,
हमें लक्ष्य की ओर बढ़ना चाहिए,
ये उनकी मेरे लिए फिक्र थी,
या बेटे को न समझा पाने का अफ़सोस,
मैं समझ नहीं पाया।
उन्होंने समझाया पिता को धोखा नहीं देना चाहिए,
काफ़ी अनुभवी हैं वो तुम से,
मैं भी सोच में पड़ गया,
तो फिर मैं क्या कर रहा,
पिता को बेवकूफ़ बना रहा,
या खुद को।
मैं समझ नहीं पाया।

यह कविता हमारे कवि मंडली के नवकवि शिवम् कनोजे जी की है ।शिवम् कनोजे मध्य प्रदेश के बालाघाट शहर के रहने वाले हैं । उनका कहना है की उन्होंने बचपन में एक मित्र के साथ लिखने का प्रयास किया था तब पहली अनुभूति हुई थी की वे लिख सकते हैं कुछ सालों बाद एक मित्र की लिखने की सलाह देने पर लिखने का मन बनाया । लेकिन कभी प्रेरणा का अभाव रहा और कभी समय का । कुछ लिख कर मिटा दिया और कभी मिटा हुआ लिखने के प्रयास में असफल रहे । कुछ समय बाद अपनी एक दोस्त के कहने पर लिखना आरंभ किया,वे प्रेम-रिश्ते एवं सामाजिक मुद्दों पर लिखने की रूचि रखते हैं । कॉलेज में दोस्तों के प्रेम-प्रसंग पर कविताएँ लिखने से उत्साहवर्धन हुआ। नमन खंडेलवाल द्वारा दिए गए अवसर के रूप में “इश्क़ ऐ नग़मा” में “प्यार था किसी और से” पहली कविता के रूप में प्रकाशित हुई। शब्दांचल में इनकी कविता “उसूल-ऐ-ज़िंदगी” चयनित की गयी हैं।इनका मानना हैं जो भी चीज़े दिल तक पहुँचती हैं उन्हें पन्नो पर उतार पाने पर ही संतुष्टि की अनुभति होती हैं।
शिवम् कनोजे द्वारा लिखी अन्य रचनाएँ
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उसूल-ऐ-ज़िंदगी
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बेनाम रिश्ता
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उम्मीन्द थी ज़िंदगी से तुम मेरी
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