ये हादसा तो किसी दिन गुज़रने वाला था
मैं बच भी जाता तो इक रोज़ मरने वाला था
तेरे सलूक तेरी आगही की उम्र दराज़
मेरे अज़ीज़ मेरा ज़ख़्म भरने वाला था
बुलंदियों का नशा टूट कर बिखरने लगा
मेरा जहाज़ ज़मीन पर उतरने वाला था
मेरा नसीब मेरे हाथ काट गए वर्ना
मैं तेरी माँग में सिंदूर भरने वाला था
मेरे चिराग मेरी शब मेरी मुंडेरें हैं
मैं कब शरीर हवाओं से डरने वाला था
काव्यशाला द्वारा प्रकाशित रचनाएँ
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जो मेरा दोस्त भी है, मेरा हमनवा भी है
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बुलाती है मगर जाने का नईं
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मोम के पास कभी आग को लाकर देखूँ
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ये हादसा तो किसी दिन गुज़रने वाला था
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रोज़ तारों को नुमाइश में खलल पड़ता हैं
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वफ़ा को आज़माना चाहिए था
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सर पर बोझ अँधियारों का है मौला खैर
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सुला चुकी थी ये दुनिया थपक थपक के मुझे
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हवा खुद अब के हवा के खिलाफ है, जानी
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जो मंसबो के पुजारी पहन के आते हैं
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उँगलियाँ यूँ न सब पर उठाया करो
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धूप बहुत है मौसम जल-थल भेजो ना
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पुराने शहरों के मंज़र निकलने लगते हैं
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कितनी पी कैसे कटी रात
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लोग हर मोड़ पे
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अँधेरे चारों तरफ़
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अगर ख़िलाफ़ हैं होने दो
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समन्दरों में मुआफिक हवा चलाता है
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उसकी कत्थई आंखों में हैं जंतर मंतर सब
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सफ़र की हद है वहाँ तक के कुछ निशान रहे
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पेशानियों पे लिखे मुक़द्दर नहीं मिले
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शहर में ढूंड रहा हूँ के सहारा दे दे
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आँख प्यासी है कोई मन्ज़र दे
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मस्जिदों के सहन तक जाना बहुत दुश्वार था
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इन्तेज़मात नये सिरे से सम्भाले जायें
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हर एक चेहरे को ज़ख़्मों का आईना न कहो
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दोस्ती जब किसी से की जाये
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चेहरों की धूप आँखों की गहराई ले गया
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बीमार को मरज़ की दवा देनी चाहिए
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दिलों में आग लबों पर गुलाब रखते हैं
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दिल जलाया तो अंजाम क्या हुआ मेरा
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मेरे कारोबार में सबने बड़ी इम्दाद की
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ये सानेहा तो किसी दिन गुजरने वाला था
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सारी बस्ती कदमों मे है ये भी इक फनकारी है
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शहरों शहरों गाँव का आँगन याद आया
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अपने होने का हम इस तरह पता देते थे
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किसी आहू के लिये दूर तलक मत जाना
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तू शब्दों का दास रे जोगी
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तेरी हर बात मोहब्बत मेँ गवारा करके
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काली रातों को भी रंगीन कहा है मैंने
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झूठी बुलंदियों का धुँआ पार करके आ
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धोखा मुझे दिये पे हुआ आफ़ताब का
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अजनबी ख्वाहिशें सीने में दबा भी न सकूँ
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एक दिन देखकर उदास बहुत
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हरेक चहरे को ज़ख़्मों का आइना न कहो
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ये ज़िन्दगी सवाल थी जवाब माँगने लगे
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गुलाब ख़्वाब दवा ज़हर जाम क्या क्या है
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तेरे वादे की तेरे प्यार की मोहताज नहीं
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किसका नारा, कैसा कौल, अल्लाह बोल
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मौका है इस बार, रोज़ मना त्यौहार, अल्लाह बादशाह
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बढ़ गयी है के घट गयी दुनिया
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कुछ अशआर