तेरी निगाहों ने – विकाश कुमार

तेरी निगाहों ने मुझे तेरी चौखट पर पकड़ा
मैंने तेरे इश्क़ से बस बचकर निकलने ही वाला था

तूने आकर फिर से मेरे ज़ख़्म हरे कर दिए
मेरा वक़्त मेरे ज़ख़्म बस भरने ही वाला था

तब उमीदों ने साथ छोड़ा मेरा
साहिल पे मैं जब बस उतरने ही वाला था

अपनी लकीरें ही हौसले फीका ग़र गयीं
मैं तेरे ख़्वाबों में रंग बस भरने ही वाला था

मेरे दिए मेरी हिम्मत की मूँडेरो पर हैं
मैं कब नसीबों की हवाओं से डरने ही वाला था

विकाश कुमार

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