वन्दना – द्वारिका प्रसाद माहेश्वरी

हे दीनबन्धु, करुणा-निधान!
जगती-तल के चिर-सत्य-प्राण!
होरही व्याप्त है कण-कण में
तेरी ज्योतिर्लीला महान्॥1॥

सर-सरिता-निर्झरिणी का जल
बहता रहता प्रतिपल अविरल
कल-कल करता, गाता फिरता,
तेरे ही यश का मधुर गान॥2॥

ये मृदुल और मंजुल कलियाँ
तरु-तरु की ये सुमनावलियाँ,
विस्फुट करतीं, विकसित करतीं
सौन्दर्य अमित तेरा महान्॥3॥

झिलमिल-झिलमिल तारे अगणित,
नीलाम्बर को करते शोभित,
वह भव्य रूप उनका स्वरूप,
तेरे प्रकाश से दीप्तिमान॥4॥

प्रभु तेरा वह प्रकाश निर्मल,
जग को ज्योतित करता प्रतिपल,
मेरा हृद-तल भी हो उज्ज्वल,
पाकर उसका नव-दिवय दान॥5॥

                   – द्वारिका प्रसाद माहेश्वरी

द्वारिका प्रसाद माहेश्वरी द्वारा अन्य रचनाएँ

शायरी ई-बुक्स ( Shayari eBooks)static_728x90

 

Advertisement

Leave a Reply

Fill in your details below or click an icon to log in:

WordPress.com Logo

You are commenting using your WordPress.com account. Log Out /  Change )

Twitter picture

You are commenting using your Twitter account. Log Out /  Change )

Facebook photo

You are commenting using your Facebook account. Log Out /  Change )

Connecting to %s