हम बे-शहर बे-सहर ही सही – विकाश कुमार

हम बे-शहर बे-सहर ही सही,
ज़िंदगी हमारी दोपहर ही सही
दिल में वफ़ा का गुमान तो है,
वैसे सफ़र बे-हमसफ़र ही सही

मरहम सी थी बातें कुछ पहर ही सही,
उन आँखों की नाराजीं हम पर ही सही
कभी रहते थे उनकी पलकों पर,
अब भटकते हैं हम दर-बदर ही सही …

– विकाश कुमार

विकाश कुमार की अन्य रचनाएँ

शायरी ई-बुक्स ( Shayari eBooks)static_728x90

14 thoughts on “हम बे-शहर बे-सहर ही सही – विकाश कुमार

Leave a comment