कविता संग्रह

वन्दना – द्वारिका प्रसाद माहेश्वरी

हे दीनबन्धु, करुणा-निधान! जगती-तल के चिर-सत्य-प्राण! होरही व्याप्त है कण-कण में तेरी ज्योतिर्लीला महान्॥1॥

मुरली कुंजनीनी कुंजनी बाजती – सूरदास

मुरली कुंजनीनी कुंजनी बाजती , सुनीरी सखी श्रवण दे अब तुजेही बिधि हरिमुख राजती

दोराहा – जावेद अख़्तर

ये जीवन इक राह नहीं इक दोराहा है पहला रस्ता बहुत सरल है इसमें कोई मोड़ नहीं है ये रस्ता इस दुनिया से बेजोड़ नहीं है इस रस्ते पर मिलते हैं रिश्तों के बंधन

गिरि पर चढ़ते, धीरे-धीर – माखनलाल चतुर्वेदी

सूझ ! सलोनी, शारद-छौनी, यों न छका, धीरे-धीरे ! फिसल न जाऊँ, छू भर पाऊँ, री, न थका, धीरे-धीरे ! कम्पित दीठों की कमल करों में ले ले, पलकों का प्यारा रंग जरा चढ़ने दे, मत चूम! नेत्र पर आ, मत जाय असाढ़, री चपल चितेरी! हरियाली छवि काढ़ !

सुशिक्षा-सोपान – अयोध्या सिंह उपाध्याय ‘हरिऔध’

जी लगा पोथी अपनी पढ़ो। केवल पढ़ो न पोथी ही को, मेरे प्यारे कढ़ो। कभी कुपथ में पाँव न डालो, सुपथ ओर ही बढ़ो। भावों की ऊँची चोटी पर बड़े चाव से चढ़ो। सुमति-खंजरी को मानवता-रुचि-चाम से मढ़ो। बन सोनार सम परम-मनोहर पर-हित गहने गढ़ो।

वतन के लिये – कैफ़ि आज़मी

यही तोहफ़ा है यही नज़राना  मैं जो आवारा नज़र लाया हूँ रंग में तेरे मिलाने के लिये क़तरा-ए-ख़ून-ए-जिगर लाया हूँ ऐ गुलाबों के वतन

आमद-ए-सैलाब-ए-तूफ़न-ए सदाए आब है – मिर्ज़ा ग़ालिब

आमद-ए सैलाब-ए तूफ़ान-ए सदाए आब है नक़श-ए-पा जो कान में रखता है उंगली जादह से बज़्म-ए-मय वहशत-कदा है किस की चश्म-ए-मस्त का  शीशे में नब्ज़-ए-परी पिन्हाँ है मौज-ए-बादा से

दीपक – द्वारिका प्रसाद माहेश्वरी

किस लिए निरन्तर जलते रहते हो मेरे दीपक? क्यों यह कठोर व्रत तुमने पाला है प्यारे दीपक?॥1॥ क्या इस जलते रहने में है स्वार्थ तुम्हारा कोई? तुम ही जगमग जलते क्यों जब अखिल सृष्टि है सोई?॥2॥

शाम नृपती मुरली भई रानी – सूरदास

शाम नृपती मुरली भई रानी ॥ध्रु०॥ बन ते ल्याय सुहागिनी किनी । और नारी उनको न सोहानी ॥१॥ कबहु अधर आलिंगन कबहु । बचन सुनन तनु दसा भुलानी ॥२॥ सुरदास प्रभू तुमारे सरनकु । प्रेम नेमसे मिलजानी ॥३॥

ए माँ टेरेसा – जावेद अख़्तर

ए माँ टेरेसा मुझको तेरी अज़मत से इनकार नहीं है जाने कितने सूखे लब और वीराँ आँखें  जाने कितने थके बदन और ज़ख़्मी रूहें