कविता का फास्ट फूड – ज्ञान प्रकाश सिंह

शीघ्रता की साधना, असिद्ध करती जा रही है,
धैर्य की अवधारणा अब लुप्त होती जा रही है।

विश्वअंतर्जाल रचना जब से हुई है अवतरित,
सूचना तकनीक तब से हो रही है विस्तारित।
विश्व होता जा रहा है विश्वव्यापी जाल शासित,
संबंधों की दृढ़ता को तय कर रहा है ‘लाइक’।
हृदयगत सम्वेदना अब दूर होती जा रही है,
धैर्य की अवधारणा अब लुप्त होती जा रही है।

सोशल मीडिया, अनसोशल होता जा रहा है,
उस पर अराजकता का राज होता जा रहा है।
सामाजिक संजाल से हो रहा जीवन प्रभावित,
लोग घटिया सोच वाले कर रहे हैं इसे दूषित।
जीवन से नैतिकता तिरोहित होती जा रही है,
धैर्य की अवधारणा अब लुप्त होती जा रही है।

ऊपर से आकर्षक लगता है सामाजिक नेट,
किन्तु इसकी भीतरी दशा की है उल्टी गति।
अज्ञानी भी धड़ल्ले से बहसबाजी करता है,
अपनी सड़ी गली सोच की, शेखी बघारता है।
शालीनता की सीमा अब नष्ट होती जा रही है,
धैर्य की अवधारणा अब लुप्त होती जा रही है।

साहित्य अधिक सबसे नेट पर हुआ प्रभावित,
चलताऊ लिखने वाला,बना आला साहित्यिक।
फास्ट फूड कविता का, नेट पर परोसता है,
बतौर महान कृति, कचरा पोस्ट करता है।
गंभीरता की महत्ता अब मंद होती जा रही है,
धैर्य की अवधारणा अब लुप्त होती जा रही है।
तथापि, इंटरनेट का पक्ष उज्जवल भी प्रचुर हैं,
पहले जो दुर्लभ था, मिलता एक क्लिक पर है।
अब विश्वअंतर्जाल की, अवहेलना सम्भव नहीं,
दोष मानसिकता का है,इंटरनेट का दोष नहीं।
सोच परिष्कृत करें जो विकृत होती जा रही है,
धैर्य की अवधारणा अब लुप्त होती जा रही है।

                                       – ज्ञान प्रकाश सिंह

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