गिरफ़्तार होने वाले हैं – सुभद्रा कुमारी चौहान

‘‘गिरफ़्तार होने वाले हैं, आता है वारंट अभी॥’’ धक-सा हुआ हृदय, मैं सहमी, हुए विकल साशंक सभी॥ किन्तु सामने दीख पड़े मुस्कुरा रहे थे खड़े-खड़े। रुके नहीं, आँखों से आँसू सहसा टपके बड़े-बड़े॥ ‘‘पगली, यों ही दूर करेगी माता का यह रौरव कष्ट?’’

राजा वसन्त वर्षा ऋतुओं की रानी – रामधारी सिंह ‘दिनकर’

राजा वसन्त वर्षा ऋतुओं की रानी लेकिन दोनों की कितनी भिन्न कहानी राजा के मुख में हँसी कण्ठ में माला रानी का अन्तर द्रवित दृगों में पानी डोलती सुरभि राजा घर कोने कोने परियाँ सेवा में खड़ी सजा कर दोने खोले अंचल रानी व्याकुल सी आई उमड़ी जाने क्या व्यथा लगी वह रोने

भिक्षुक – सूर्यकांत त्रिपाठी “निराला”

वह आता-- दो टूक कलेजे को करता, पछताता  पथ पर आता। पेट पीठ दोनों मिलकर हैं एक, चल रहा लकुटिया टेक, मुट्ठी भर दाने को — भूख मिटाने को मुँह फटी पुरानी झोली का फैलाता — दो टूक कलेजे के करता पछताता पथ पर आता।

खिलौनेवाला – सुभद्रा कुमारी चौहान

वह देखो माँ आज खिलौनेवाला फिर से आया है। कई तरह के सुंदर-सुंदर नए खिलौने लाया है। हरा-हरा तोता पिंजड़े में गेंद एक पैसे वाली छोटी सी मोटर गाड़ी है सर-सर-सर चलने वाली।

राजे ने अपनी रखवाली की – सूर्यकांत त्रिपाठी “निराला”

राजे ने अपनी रखवाली की; किला बनाकर रहा; बड़ी-बड़ी फ़ौजें रखीं । चापलूस कितने सामन्त आए । मतलब की लकड़ी पकड़े हुए

कठिन प्रयत्नों से सामग्री – सुभद्रा कुमारी चौहान

कठिन प्रयत्नों से सामग्री मैं बटोरकर लाई थी। बड़ी उमंगों से मन्दिर में, पूजा करने आई थी॥ पास पहुँचकर जो देखा तो आहा! द्वार खुला पाया। जिसकी लगन लगी थी उसके दर्शन का अवसर आया॥

कोयल – सुभद्रा कुमारी चौहान

देखो कोयल काली है पर मीठी है इसकी बोली इसने ही तो कूक कूक कर आमों में मिश्री घोली कोयल कोयल सच बतलाना क्या संदेसा लायी हो बहुत दिनों के बाद आज फिर इस डाली पर आई हो

कलह-कारण – सुभद्रा कुमारी चौहान

कड़ी आराधना करके बुलाया था उन्हें मैंने। पदों को पूजने के ही लिए थी साधना मेरी॥ तपस्या नेम व्रत करके रिझाया था उन्हें मैंने। पधारे देव, पूरी हो गई आराधना मेरी॥

उल्लास – सुभद्रा कुमारी चौहान

शैशव के सुन्दर प्रभात का मैंने नव विकास देखा। यौवन की मादक लाली में जीवन का हुलास देखा।। जग-झंझा-झकोर में आशा-लतिका का विलास देखा। आकांक्षा, उत्साह, प्रेम का क्रम-क्रम से प्रकाश देखा।।

शोक की संतान – रामधारी सिंह ‘दिनकर’

हृदय छोटा हो, तो शोक वहां नहीं समाएगा। और दर्द दस्तक दिये बिना दरवाजे से लौट जाएगा। टीस उसे उठती है, जिसका भाग्य खुलता है। वेदना गोद में उठाकर सबको निहाल नहीं करती,