रात यों कहने लगा मुझसे गगन का चाँद – रामधारी सिंह ‘दिनकर’

रात यों कहने लगा मुझसे गगन का चाँद,  आदमी भी क्या अनोखा जीव होता है!  उलझनें अपनी बनाकर आप ही फँसता,  और फिर बेचैन हो जगता, न सोता है।  जानता है तू कि मैं कितना पुराना हूँ?  मैं चुका हूँ देख मनु को जनमते-मरते;  और लाखों बार तुझ-से पागलों को भी  चाँदनी में बैठ स्वप्नों पर सही करते। 

लोहे के मर्द – रामधारी सिंह ‘दिनकर’

पुरुष वीर बलवान, देश की शान, हमारे नौजवान घायल होकर आये हैं। कहते हैं, ये पुष्प, दीप, अक्षत क्यों लाये हो?

जब तुम आये – ज्ञान प्रकाश सिंह

धीरे से खोल कपाटों को, नीरवता से जब तुम आये,  चमकी हो चपला जैसे, चितवन में विद्युत भर लाये। जब तुम आये, जैसे रचना चित्र कल्पना, जैसे जटिल जाल स्मृति के  भाषा के अपठित भावों के, प्रश्न लिए पलकों पर आये।  जब तुम आये,

तुषार कणिका –  ज्ञान प्रकाश सिंह

नव प्रभात का हुआ आगमन  है उपवन अंचल स्तंभित  पुष्प लताओं के झुरमुट में  छिपकर बैठी  हरित पत्र पर  बूँद ओस की  ज्योतित निर्मल 

निराशावादी – रामधारी सिंह ‘दिनकर’

पर्वत पर, शायद, वृक्ष न कोई शेष बचा, धरती पर, शायद, शेष बची है नहीं घास; उड़ गया भाप बनकर सरिताओं का पानी, बाकी न सितारे बचे चाँद के आस-पास ।

स्मॅाग – ज्ञान प्रकाश सिंह

ये कैसी धुँध छाई, ये धुआँ कहाँ से आया? मंत्री जी से जब पूछा, ये कैसी धुँध आई  बोले, लोकतान्त्रिक है, सब पर है छाई, अमीर और ग़रीब में, फ़र्क नहीं करती इसीलिए तो हमने एनसीआर में बुलाया।  ये कैसी धुँध छाई, ये धुआँ कहाँ से आया?

लेन-देन – रामधारी सिंह ‘दिनकर’

लेन-देन का हिसाब लंबा और पुराना है। जिनका कर्ज हमने खाया था, उनका बाकी हम चुकाने आये हैं। और जिन्होंने हमारा कर्ज खाया था, उनसे हम अपना हक पाने आये हैं।

गीत, अगीत – रामधारी सिंह ‘दिनकर’

गीत, अगीत, कौन सुंदर है? गाकर गीत विरह की तटिनी वेगवती बहती जाती है, दिल हलका कर लेने को उपलों से कुछ कहती जाती है। तट पर एक गुलाब सोचता, "देते स्‍वर यदि मुझे विधाता,

शक्ति और क्षमा – रामधारी सिंह ‘दिनकर’

क्षमा, दया, तप, त्याग, मनोबल सबका लिया सहारा पर नर व्याघ्र सुयोधन तुमसे कहो, कहाँ, कब हारा?

कलम, आज उनकी जय बोल – रामधारी सिंह ‘दिनकर’

जला अस्थियाँ बारी-बारी चिटकाई जिनमें चिंगारी, जो चढ़ गये पुण्यवेदी पर लिए बिना गर्दन का मोल कलम, आज उनकी जय बोल।