लकड़ी की काठी – गुलज़ार

लकड़ी की काठी, काठी पे घोड़ा घोड़े की दुम पे जो मारा हथौड़ा दौड़ा दौड़ा दौड़ा घोड़ा दुम उठा के दौड़ा

हम को मन की शक्ति देना – गुलज़ार

हम को मन की शक्ति देना, मन विजय करें दूसरो की जय से पहले, ख़ुद को जय करें।

बचपन – सुभद्रा कुमारी चौहान

बार-बार आती है मुझको मधुर याद बचपन तेरी। गया ले गया तू जीवन की सबसे मस्त खुशी मेरी॥

चूँ-चूँ चूँ-चूँ चूहा बोले – अयोध्या सिंह उपाध्याय ‘हरिऔध’

चूँ-चूँ चूँ-चूँ चूहा बोले, म्याऊँ म्याऊँ बिल्ली। ती-ती, ती-ती कीरा बोले, झीं-झीं झीं-झीं झिल्ली।

वीर तुम बढ़े चलो – द्वारिका प्रसाद माहेश्वरी

वीर तुम बढ़े चलो ! धीर तुम बढ़े चलो ! हाथ में ध्वजा रहे बाल दल सजा रहे ध्वज कभी झुके नहीं दल कभी रुके नहीं वीर तुम बढ़े चलो ! धीर तुम बढ़े चलो ! सामने पहाड़ हो सिंह की दहाड़ हो तुम निडर डरो नहीं तुम निडर डटो वहीं वीर तुम बढ़े चलो … Continue reading वीर तुम बढ़े चलो – द्वारिका प्रसाद माहेश्वरी

सानवी सरीखी – विकाश कुमार

मेरी सरल कविता के अक्षर , गर पहुँच पाते अम्बर तेरी किलकारियाँ हरी भी सुनते, जड़ समान वशिभूत होकर । नन्ही नन्ही आँखों से , छु डाला मन के भीतर वो पहली मुस्कान तेरी , उज्जवल कर डाली हर दिशा प्रखर । एक कवि की कल्पना तू , एक गीत का तू स्वर मूर्तिकार की देवी … Continue reading सानवी सरीखी – विकाश कुमार

मन विचरण करता रहता है –  ज्ञान प्रकाश सिंह

ऐसे ही विचरण करता मन पहुँच गया क्रीड़ास्थल पर, ऋषिमा जहाँ खेलने आती , अपनी मम्मी को संग लेकर । साधन वहाँ प्रतिस्थापित थे मन बहलाने हेतु अनेक किन्तु अनूठा दिखलाई , पड़ता था उनमें से एक । वह था एक अचेतन लेकिन , होता प्रतीत चेतन युक्त लहराता दोनों हाथों को मानो करता सबका … Continue reading मन विचरण करता रहता है –  ज्ञान प्रकाश सिंह

मैं क्या क्या छोड़ आया हूँ – ज्ञान प्रकाश सिंह

क्लब के सामने ऋषिमा ने, जहाँ फ़ोटो खिंचाया था गमकते लहलहाते फूलों की क्यारी छोड़ आया हूँ ।       पैदल रास्ते पर रुक कर, जिसे ऋषिमा दिखाती थी पक्की सड़क के मोड़ पर, उस ‘जे’ को छोड़ आया हूँ ।     जिनकी ओट से बच्चे ने, हाइड-सीक खेला था बार-बी-क्यू के पास, … Continue reading मैं क्या क्या छोड़ आया हूँ – ज्ञान प्रकाश सिंह

सब याद है मुझको अब भी… – ज्ञान प्रकाश सिंह

ऋषिमा अब उस पते पर नहीं रहती किंतु सब याद है मुझको अब भी । फ़्लैट की बाल्कनी में खड़ी हो मेरे साथ जब भी , आते पवन के तेज़ झोंकों को ऊँचे स्वर में रुक जाने को कहती थी और जब तेज़ बारिश हो उसे जाने को कहती थी । ‘स्टॉप विंड , स्टॉप … Continue reading सब याद है मुझको अब भी… – ज्ञान प्रकाश सिंह