मुझे खर्ची में पूरा एक दिन, हर रोज़ मिलता है मगर हर रोज़ कोई छीन लेता है, झपट लेता है, अंटी से कभी खीसे से गिर पड़ता है तो गिरने की आहट भी नहीं होती,
Author: ग़ुलज़ार
ग़ुलज़ार नाम से प्रसिद्ध सम्पूर्ण सिंह कालरा (जन्म-18 अगस्त 1936) हिन्दी फिल्मों के एक प्रसिद्ध गीतकार हैं। इसके अतिरिक्त वे एक कवि, पटकथा लेखक, फ़िल्म निर्देशक तथा नाटककार हैं। उनकी रचनाए मुख्यतः हिन्दी, उर्दू तथा पंजाबी में हैं, परन्तु ब्रज भाषा, खङी बोली, मारवाड़ी और हरियाणवी में भी इन्होने रचनाये की। गुलजार को वर्ष 2002 में सहित्य अकादमी पुरस्कार और वर्ष 2004 में भारत सरकार द्वारा दिया जाने वाला तीसरे सर्वोच्च नागरिक सम्मान पद्म भूषण से भी सम्मानित किया जा चुका है। वर्ष 2009 में डैनी बॉयल निर्देशित फिल्म स्लम्डाग मिलियनेयर में उनके द्वारा लिखे गीत जय हो के लिये उन्हे सर्वश्रेष्ठ गीत का ऑस्कर पुरस्कार पुरस्कार मिल चुका है। इसी गीत के लिये उन्हे ग्रैमी पुरस्कार से भी सम्मानित किया जा चुका है।
कृतियाँ
- चौरस रात (लघु कथाएँ, 1962)
- जानम (कविता संग्रह, 1963)
- एक बूँद चाँद (कविताएँ, 1972)
- रावी पार (कथा संग्रह, 1997)
- रात, चाँद और मैं (2002)
- रात पश्मीने की
- खराशें (2003)
रात चुपचाप दबे पाँव चली जाती है – गुलज़ार
रात चुपचाप दबे पाँव चली जाती है रात ख़ामोश है रोती नहीं हँसती भी नहीं
पूरा दिन – गुलज़ार
मुझे खर्ची में पूरा एक दिन, हर रोज़ मिलता है मगर हर रोज़ कोई छीन लेता है, झपट लेता है, अंटी से कभी खीसे से गिर पड़ता है तो गिरने की आहट भी नहीं होती,
ग़म मौत का नहीं है – गुलज़ार
ग़म मौत का नहीं है, ग़म ये के आखिरी वक़्त भी तू मेरे घर नहीं है.... निचोड़ अपनी आँखों को,
किताबें – गुलज़ार
किताबें झाँकती हैं बंद आलमारी के शीशों से, बड़ी हसरत से तकती हैं महीनों अब मुलाकातें नहीं होती जो शामें उनकी सोहबत में कटा करती थीं
बीते रिश्ते तलाश करती है – गुलज़ार
बीते रिश्ते तलाश करती है ख़ुशबू ग़ुंचे तलाश करती है
लकड़ी की काठी – गुलज़ार
लकड़ी की काठी, काठी पे घोड़ा घोड़े की दुम पे जो मारा हथौड़ा दौड़ा दौड़ा दौड़ा घोड़ा दुम उठा के दौड़ा
हम को मन की शक्ति देना – गुलज़ार
हम को मन की शक्ति देना, मन विजय करें दूसरो की जय से पहले, ख़ुद को जय करें।