लकड़ी की काठी – गुलज़ार

लकड़ी की काठी, काठी पे घोड़ा
घोड़े की दुम पे जो मारा हथौड़ा
दौड़ा दौड़ा दौड़ा घोड़ा दुम उठा के दौड़ा

घोड़ा पहुंचा चौक में, चौक में था नाई
घोड़ेजी की नाई ने हज़ामत जो बनाई
चग-बग चग-बग चग-बग चग-बग
दौड़ा दौड़ा दौड़ा घोड़ा दुम उठा के दौड़ा

घोड़ा था घमंडी पहुंचा सब्जी मंडी
सब्जी मंडी बरफ़ पड़ी थी बरफ़ में लग गई ठंडी
चग-बग चग-बग चग-बग चग-बग
दौड़ा दौड़ा दौड़ा घोड़ा दुम उठा के दौड़ा

घोड़ा अपना तगड़ा है देखो कितनी चरबी है
चलता है महरौली में पर घोड़ा अपना अरबी है
चग-बग चग-बग चग-बग चग-बग
बांह छुड़ा के दौड़ा घोड़ा दुम उठा के दौड़ा।

                                        – गुलज़ार

चलचित्र रूपांतरण

गुलज़ार जी की अन्य प्रसिध रचनाएँ

10 thoughts on “लकड़ी की काठी – गुलज़ार

  1. @madhusudan हमें अच्छा लगा आपकी प्रतिक्रिया जानकार। हम आशा करते हैं की आगे भी हमें आपका प्रेम मिलता रहेगा। हमारी संस्था के सदस्यों के लिए ये बहुत बड़ा प्रोत्साहन है

    Like

Leave a comment