बेड़ियाँ पिघल रहीं, प्रचंड नाद हो रहा
बंधन विमुक्त हो रहे, निनाद घोर हो रहा।
सामाजिक वर्जनाओं पर,रूढ़ियों ढकोसलों पर
कुत्सित मान्यताओं पर, प्रबल प्रहार हो रहा।
शहरों महानगरों में, कस्बों में गाँवों में
सड़कों पर राहों पर, चेतना प्रसार हो रहा।
मानवी प्रतिष्ठा का, जीवन स्वाधीनता का
नारी के प्रति जग, आभार ज्ञापन कर रहा।
स्त्री सजगता का, विजय का, सफलता का
नारी की शक्ति का, परचम लहरा रहा।
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