ग़मे-दुनिया बहुत ईज़ारशाँ है – ख़ुमार बाराबंकवी

ग़मे-दुनिया बहुत ईज़ारशाँ है
कहाँ है ऐ ग़मे-जानाँ! कहाँ है

इक आँसू कह गया सब हाल दिल का
मैं समझा था ये ज़ालिम बेज़बाँ है

ख़ुदा महफ़ूज़ रखे आफ़तों से
कई दिन से तबीयत शादुमाँ है

वो काँटा है जो चुभ कर टूट जाए
मोहब्बत की बस इतनी दासताँ है

ये माना ज़िन्दगी फ़ानी है लेकिन
अगर आ जाए जीना, जाविदाँ है

सलामे-आख़िर अहले-अंजुमन को
‘ख़ुमार’ अब ख़त्म अपनी दास्ताँ है

– खुमार बाराबंकवी

 

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