वो हमें जिस कदर आज़माते रहे  – ख़ुमार बाराबंकवी

वो हमें जिस कदर आज़माते रहे
अपनी ही मुश्किलो को बढ़ाते रहे

थी कमाने तो हाथो में अब यार के
तीर अपनो की जानिब से आते रहे

आँखे सूखी हुई नदियाँ बन गई
और तूफ़ा बदस्तूर आते रहे

कर लिया सब ने हमसे किनारा मगर
एक नास-ए-गरीब आते जाते रहे

प्यार से उनका इंकार बरहक मगर
उनके लब किसलिए थरथराते रहे

याद करने पर भी दोस्त आए न याद
दोस्तो के करम याद आते रहे

बाद-ए-तौबा ये आलम रहा मुद्द्तो
हाथ बेजाम भी लब तक आते रहे

अल्लमा लफ़्जिशे यक तब्बसुम “खुमार”
ज़िन्दगी भर हम आँसू बहाते रहे

– खुमार बाराबंकवी

खुमार बाराबंकवी की अन्य प्रसिध रचनाएँ

  • एक पल में एक सदी का मज़ा
  • दुनिया के ज़ोर प्यार के दिन
  • ये मिसरा नहीं है (शीघ्र प्रकाशित होगी)
  • कभी शेर-ओ-नगमा बनके (शीघ्र प्रकाशित होगी)
  • वो हमें जिस कदर आज़मा रहे है (शीघ्र प्रकाशित होगी)
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  • तेरे दर से उठकर (शीघ्र प्रकाशित होगी)
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  • एक पल में एक सदी का मज़ा हमसे पूछिए (शीघ्र प्रकाशित होगी)
  • हाल-ए-गम उन को सुनाते जाइए (शीघ्र प्रकाशित होगी)
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  • मुझ को शिकस्ते दिल का मज़ा याद आ गया (शीघ्र प्रकाशित होगी)
  • गमे-दुनिया बहुत इज़ारशाँ है (शीघ्र प्रकाशित होगी)
  • अकेले हैं वो और झुंझला रहे हैं (शीघ्र प्रकाशित होगी)
  • बुझ गया दिल हयात बाकी है (शीघ्र प्रकाशित होगी)
  • वो सवा याद आये भुलाने के बाद (शीघ्र प्रकाशित होगी)
  • हम उन्हें वो हमें भुला बैठे (शीघ्र प्रकाशित होगी)

 

 

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