खुमार बाराबंकवी (1919-1999) उर्दू शायर और उत्तरप्रदेश, बाराबंकी के थे। उनका असली नाम मोहम्मद हैदर खान था, यह शब्द अरबी के 'खम' से आता है जिसका अर्थ है शराब का मर्तबान।
उन्होंने ख़ुमार के तख़ल्लुस (कलम नाम) के तहत लिखा, जिसका अर्थ है नशा। उनका जन्म 20 सितंबर 1919 को बाराबंकी, उत्तर प्रदेश में हुआ था। बचपन में उन्होंने अपने परिवार में काव्यात्मक वातावरण पाया। उनके पिता डॉ गुलाम हैदर ने कलम नाम 'बहार' के तहत सलमान और मारीसियां लिखीं। उनके चाचा 'करारा बारबंकवी' बाराबंकी के एक प्रसिद्ध कवि थे जिन्होंने युवा खुमार का मार्गदर्शन किया और उनकी कविता को इस्लाह (सुधार) किया। उनके भाई काजीम हैदर 'निगर' जो कम उम्र में चल बसे, वे भी कवि थे। खुमार एक बुद्धिमान छात्र थे और कई विषयों में अच्छे अंको के साथ सरकारी कॉलेज बाराबंकी से अपने उच्च विद्यालय उत्तीर्ण हुए थे। इसके बाद वह अपनी मध्यवर्ती कक्षाओं के लिए लखनऊ गए जहां उनके जीवन में एक रोमांटिक मोड़ ने उन्हें शिक्षा छोड़ने और कविता शुरू करने के लिए प्रेरित किया। खुमार बारबंकवी की एक मधुर आवाज़ थी और जल्द ही मुशाएरों में लोकप्रिय हो गये । वह जिगर मुरादाबादी से भी परिचित हुए और एक लंबे समय के लिए उनके साथ मिलकर बने रहे। उनकी गज़लों और आवाज़ ने उन्हें मुशाएरों में पसंदीदा बनाया और विश्व की प्रसिद्धि का एक शय बन गया । जिगर मुरादाबादी और खुमार बारबंकवी अपने कविता के साथ किसी भी मुशाएरे की सफलता की गारंटी के साथ ही उनकी मधुर आवाज़ और पाठ की शैली की गारंटी के लिए जाने जाते थे। खुमार जिगर मोरादाबाद की तरह शास्त्रीय ग़ज़ल एक प्रबल समर्थक थे। हालांकि उन्हें उर्दू शायरी में प्रगतिशील आंदोलन के समर्थकों से आलोचनाओं का सामना करना पड़ा लेकिन वे शास्त्रीय ग़ज़ल के पक्ष में खड़े हुए। खूमार ने हिंदी फिल्मों जैसे शाहजहां, बारदारी, 'साज और आवाज़', के. आसिफ आदि द्वारा निर्देशित लव एंड गॉड (1986) के लिए कुछ प्रसिद्ध गीत लिखे हैं। खुमार 1999 में निधन हो गया ।
ख़ुमार बाराबंकवी की प्रसिद्ध रचनाएँ
• दुनिया के ज़ोर प्यार के दिन
• ये मिसरा नहीं है
• कभी शेर-ओ-नगमा बनके
• वो हमें जिस कदर आज़मा रहे है
• वो जो आए हयात याद आई
• तेरे दर से उठकर
• न हारा है इश्क और न दुनिया थकी है
• सुना है वो हमें भुलाने लगे है
• झुंझलाए है लजाए है
• एक पल में एक सदी का मज़ा
• रुख़्सत-ए-शबाब
• वो खफा है तो कोई बात नहीं
• दिल को तस्कीन-ए-यार ले डूबी
• आँसूगदी से इश्क-ए-जवाँ को बचाइए
• ऐ मौत उन्हें भुलाए ज़माने गुज़र गये
• तस्वीर बनाता हूँ तस्वीर नहीं बनती
• एक पल में एक सदी का मज़ा हमसे पूछिए
• हाल-ए-गम उन को सुनाते जाइए
• हुस्न जब मेहरबान हो तो क्या कीजिए
• हिज्र की शब है और उजाला है
• ऐसा नहीं कि उन से मोहब्बत नहीं रही
• क्या हुआ हुस्न हमसफ़र है या नहीं
• मुझ को शिकस्ते दिल का मज़ा याद आ गया
• गमे-दुनिया बहुत इज़ारशाँ है
• अकेले हैं वो और झुंझला रहे हैं
• बुझ गया दिल हयात बाकी है
• वो सवा याद आये भुलाने के बाद
• हम उन्हें वो हमें भुला बैठे
View all posts by ख़ुमार बाराबंकवी