आओ फिर से दिया जलाएँ – अटल बिहारी वाजपेयी

आओ फिर से दिया जलाएँ भरी दुपहरी में अंधियारा सूरज परछाई से हारा अंतरतम का नेह निचोड़ें- बुझी हुई बाती सुलगाएँ। आओ फिर से दिया जलाएँ

गाँधी – रामधारी सिंह ‘दिनकर’

देश में जिधर भी जाता हूँ, उधर ही एक आह्वान सुनता हूँ "जड़ता को तोड़ने के लिए भूकम्प लाओ । घुप्प अँधेरे में फिर अपनी मशाल जलाओ । पूरे पहाड़ हथेली पर उठाकर पवनकुमार के समान तरजो । कोई तूफ़ान उठाने को कवि, गरजो, गरजो, गरजो !"

एक विलुप्त कविता – रामधारी सिंह ‘दिनकर’

बरसों बाद मिले तुम हमको आओ जरा बिचारें, आज क्या है कि देख कौम को गम है। कौम-कौम का शोर मचा है, किन्तु कहो असल में कौन मर्द है जिसे कौम की सच्ची लगी लगन है?

एक पत्र – रामधारी सिंह ‘दिनकर’

मैं चरणॊं से लिपट रहा था, सिर से मुझे लगाया क्यों? पूजा का साहित्य पुजारी पर इस भाँति चढ़ाया क्यों? गंधहीन बन-कुसुम-स्तुति में अलि का आज गान कैसा? मन्दिर-पथ पर बिछी धूलि की पूजा का विधान कैसा?

परदेशी – रामधारी सिंह ‘दिनकर’

माया के मोहक वन की क्या कहूँ कहानी परदेशी? भय है, सुन कर हँस दोगे मेरी नादानी परदेशी! सृजन-बीच संहार छिपा, कैसे बतलाऊं परदेशी? सरल कंठ से विषम राग मैं कैसे गाऊँ परदेशी?

कुंजी – रामधारी सिंह ‘दिनकर’

घेरे था मुझे तुम्हारी साँसों का पवन, जब मैं बालक अबोध अनजान था। यह पवन तुम्हारी साँस का सौरभ लाता था। उसके कंधों पर चढ़ा मैं जाने कहाँ-कहाँ आकाश में घूम आता था।

हो कहाँ अग्निधर्मा नवीन ऋषियों – रामधारी सिंह ‘दिनकर’

कहता हूँ¸ ओ मखमल–भोगियो। श्रवण खोलो¸ रूक सुनो¸ विकल यह नाद कहां से आता है। है आग लगी या कहीं लुटेरे लूट रहे? वह कौन दूर पर गांवों में चिल्लाता है?

बासरी बजाय आज रंगसो मुरारी – सूरदास

बासरी बजाय आज रंगसो मुरारी ।  शिव समाधि भूलि गयी मुनि मनकी तारी ॥ बा०॥ध्रु०॥ बेद भनत ब्रह्मा भुले भूले ब्रह्मचरी ।  सुनतही आनंद भयो लगी है करारी ॥ बास०॥१॥ रंभा सब ताल चूकी भूमी नृत्य कारी । 

देख देख एक बाला जोगी – सूरदास

देख देख एक बाला जोगी द्वारे मेरे आया हो ॥ध्रु०॥ पीतपीतांबर गंगा बिराजे अंग बिभूती लगाया हो ।  तीन नेत्र अरु तिलक चंद्रमा जोगी जटा बनाया हो ॥१॥ भिछा ले निकसी नंदरानी मोतीयन थाल भराया हो । 

जियो जियो अय हिन्दुस्तान – रामधारी सिंह ‘दिनकर’

जाग रहे हम वीर जवान, जियो जियो अय हिन्दुस्तान ! हम प्रभात की नई किरण हैं, हम दिन के आलोक नवल, हम नवीन भारत के सैनिक, धीर,वीर,गंभीर, अचल । हम प्रहरी उँचे हिमाद्रि के, सुरभि स्वर्ग की लेते हैं । हम हैं शान्तिदूत धरणी के, छाँह सभी को देते हैं। वीर-प्रसू माँ की आँखों के हम नवीन उजियाले हैं गंगा, यमुना, हिन्द महासागर के हम रखवाले हैं। तन मन धन तुम पर कुर्बान, जियो जियो अय हिन्दुस्तान !