इन नयनों के जंगल मेँ एक बावरी लड़की रहती है छूकर कोमल होठों को अधरों की प्यास बुझाती है
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हुर्फ – सज सोलापुर
किसीने कहा हर एक के हुर्फ रंग लाते है, कुछ अपने भी लिखलो, हमने भी दिल कि स्याही से कुछ हुर्फ लिख डाले, जो कि हवाओं मे घुल गये, अब शिकायत करे भी तो किससे?, हवाओं से?, हुर्फो से? या दिल से?, तडपने का मौसम गुजरा तो जवाब आया,
फितूर – विकास कुमार
प्रश्नों को , दायरे में ही रहने दो, जो कहते हैं हम वही तुम होने दो। पथ्थरों को, पूजती है दुनिया, तो क्या------- इंसान जो पथ्थर हैं पथ्थर ही रहने दो।
अभीप्सा – विकास कुमार
भरी दोपहरी गर्म रेत तपते मरुथल बढ़ती पिपासा मरुधान हैं जिस ओर रे मन चल उस ओर
कविता – विकास कुमार
कल कल करती नदियों में मृदुभाव ह्र्दय के बहते हैं प्रेमकाज मृदु शब्द सुनहरे परमारथ मेँ कहते हैं लेखन का लेख बने ये कभी कभी युगलों की प्यास बुझाते हैं नव आशा संचार लिये ह्रदय का संताप मिटाते हैं
पहचान में तेरे प्रिये – बिकाश पाण्डेय
तुम सदा वे ही रहे जो पास मेरे ना रहा, कभी यादों की हुक तो, कभी अनछुआ सपना रहा | कैसे कहूं की विह्वल हूँ आज फिर किस के लिए ? ये जन्म भी कट जाएगा पहचान में तेरे प्रिये..
जिंदगी – विकास कुमार
वक्त के पायदानों पर दुपाये खड़ी है जिंदगी रेत के मानिंद हथेली से फिसलती जिंदगी जागकर नहाई धोई और चल पड़ी है जिंदगी उबड़ खाबड़ रास्ते औऱ सड़कों पर दौड़ती जिंदगी
औरत हुँ मैं – प्रिया आर्य “दीवानी’
नदी की गहराई में छुपी मिट्टी हुँ मैं जिस साँचे में डालो, ढल जाती हुँ मैं….. आँशुयो की बेमौसम बरसात हुँ मैं दिल का दर्द सहने में पत्थर हुँ मैं…..
वो पल आँसू दे जाते हैं – सोमिल जैन ‘सोमू’
वो पल आँसू दे जाते हैं हम कई यादे छोड़ जाते हैं कई अधूरी बातें छोड़ जाते हैं ।।।।। जो न हुयी, शायद न होनी थी, वो मुलाकातें छोड़ जाते हैं।
बदलाव – रुचिका मान ‘रूह’
ये कैसा विमूढ़ता का पुलिंदा लिये बैठे हो? सुना नहीं तुमने कि शहर बदल रहा है? ऐसे निरीह कब हुए तुम? यहां की रिवायतों से इतने अनजान तो कभी नहीं थे... तुम तो उत्साहित थे.... नव- उत्तेजना का दौर है,










