आमद-ए सैलाब-ए तूफ़ान-ए सदाए आब है नक़श-ए-पा जो कान में रखता है उंगली जादह से बज़्म-ए-मय वहशत-कदा है किस की चश्म-ए-मस्त का शीशे में नब्ज़-ए-परी पिन्हाँ है मौज-ए-बादा से
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वक्त ने किया क्या हंसी सितम – कैफ़ि आज़मी
वक्त ने किया क्या हंसी सितम तुम रहे न तुम, हम रहे न हम ।
आ कि मेरी जान को क़रार नहीं है – मिर्ज़ा ग़ालिब
आ कि मेरी जान को क़रार नहीं है ताक़ते-बेदादे-इन्तज़ार नहीं है देते हैं जन्नत हयात-ए-दहर के बदले नश्शा बअन्दाज़-ए-ख़ुमार नहीं है
असद’ हम वो जुनूँ-जौलाँ – मिर्ज़ा ग़ालिब
'असद' हम वो जुनूँ-जौलाँ गदा-ए-बे-सर-ओ-पा हैं कि है सर-पंजा-ए-मिज़्गान-ए-आहू पुश्त-ख़ार अपना
अफ़सोस कि दनदां – मिर्ज़ा ग़ालिब
अफ़सोस कि दनदां का किया रिज़क़ फ़लक ने जिन लोगों की थी दर-ख़ुर-ए-अक़्द-ए-गुहर अंगुश्त काफ़ी है निशानी तिरा छल्ले का न देना ख़ाली मुझे दिखला के ब-वक़्त-ए-सफ़र अंगुश्त लिखता हूं असद सोज़िश-ए दिल से सुख़न-ए गरम ता रख न सके कोई मिरे हरफ़ पर अनगुशत
लाई फिर इक लग़्ज़िशे-मस्ताना तेरे शहर में – कैफ़ि आज़मी
लाई फिर इक लग़्ज़िशे-मस्ताना तेरे शहर में । फिर बनेंगी मस्जिदें मयख़ाना तेरे शहर में । आज फिर टूटेंगी तेरे घर की नाज़ुक खिड़कियाँ आज फिर देखा गया दीवाना तेरे शहर में ।
ये न थी हमारी क़िस्मत – मिर्ज़ा ग़ालिब
ये न थी हमारी क़िस्मत के विसाले यार होता अगर और जीते रहते यही इन्तज़ार होता
लश्कर के ज़ुल्म – कैफ़ि आज़मी
दस्तूर क्या ये शहरे-सितमगर के हो गए जो सर उठा के निकले थे बे-सर के हो गए ये शहर तो है आप का, आवाज़ किस की थी देखा जो मुड़ के हमने तो पत्थर के हो गए
अज़ मेहर ता-ब-ज़र्रा दिल-ओ-दिल है आइना – मिर्ज़ा ग़ालिब
अज़ मेहर ता-ब-ज़र्रा दिल-ओ-दिल है आइना तूती को शश जिहत से मुक़ाबिल है आइना
बस इक झिझक है यही – कैफ़ि आज़मी
बस इक झिझक है यही हाल-ए-दिल सुनाने में कि तेरा ज़िक्र भी आयेगा इस फ़साने में बरस पड़ी थी जो रुख़ से नक़ाब उठाने में वो चाँदनी है अभी तक मेरे ग़रीब-ख़ाने में


