समुद्र का पानी – रामधारी सिंह ‘दिनकर’

बहुत दूर पर  अट्टहास कर  सागर हँसता है।  दशन फेन के,  अधर व्योम के।  ऐसे में सुन्दरी! बेचने तू क्या निकली है,  अस्त-व्यस्त, झेलती हवाओं के झकोर सुकुमार वक्ष के फूलों पर ?

वातायन – रामधारी सिंह ‘दिनकर’

मैं झरोखा हूँ।  कि जिसकी टेक लेकर  विश्व की हर चीज बाहर झाँकती है।  पर, नहीं मुझ पर,  झुका है विश्व तो उस जिन्दगी पर  जो मुझे छूकर सरकती जा रही है।

झील – रामधारी सिंह ‘दिनकर’

मत छुओ इस झील को।  कंकड़ी मारो नहीं,  पत्तियाँ डारो नहीं,  फूल मत बोरो।  और कागज की तरी इसमें नहीं छोड़ो। 

दिल्ली – रामधारी सिंह ‘दिनकर’

यह कैसी चांदनी अम के मलिन तमिस्र गगन में कूक रही क्यों नियति व्यंग से इस गोधूलि-लगन में ? मरघट में तू साज रही दिल्ली कैसे श्रृंगार? यह बहार का स्वांग अरी इस उजड़े चमन में!

परिचय – रामधारी सिंह ‘दिनकर’

सलिल कण हूँ, या पारावार हूँ मैं स्वयं छाया, स्वयं आधार हूँ मैं बँधा हूँ, स्वप्न हूँ, लघु वृत हूँ मैं नहीं तो व्योम का विस्तार हूँ मैं

समर शेष है – रामधारी सिंह ‘दिनकर’

ढीली करो धनुष की डोरी, तरकस का कस खोलो , किसने कहा, युद्ध की वेला चली गयी, शांति से बोलो? किसने कहा, और मत वेधो ह्रदय वह्रि के शर से, भरो भुवन का अंग कुंकुम से, कुसुम से, केसर से?

परम्परा – रामधारी सिंह ‘दिनकर’

परंपरा को अंधी लाठी से मत पीटो उसमें बहुत कुछ है जो जीवित है जीवन दायक है जैसे भी हो ध्वंस से बचा रखने लायक है

कृष्ण की चेतावनी – रामधारी सिंह ‘दिनकर’

रामधारी सिंह 'दिनकर' जी का महाकाव्य कृष्ण की चेतावनी रामधारी सिंह 'दिनकर' जी के प्रसिध काव्यों में से एक "रश्मीरथि" की एक बड़ी लोकप्रिय कविता हैं | वर्षों तक वन में घूम-घूम, बाधा-विघ्नों को चूम-चूम, सह धूप-घाम, पानी-पत्थर, पांडव आये कुछ और निखर। सौभाग्य न सब दिन सोता है, देखें, आगे क्या होता है। मैत्री … Continue reading कृष्ण की चेतावनी – रामधारी सिंह ‘दिनकर’