कच्ची उम्र के पक्के साथी – ज्ञान प्रकाश सिंह

वह उम्र भले ही कच्ची थी, पर तब के साथी पक्के थे।
वह निश्छलता की दुनिया थी जिससे पटती दिल से पटती
वे हमको अच्छे लगते थे, हम उनको अच्छे लगते थे।
वह उम्र भले ही कच्ची थी, पर तब के साथी पक्के थे।
वह स्वार्थ रहित नाता होता, भोला होता भावुक होता
पाखण्ड झूठ माया फरेब से, मुक्त हमारे रिश्ते थे ।
वह उम्र भले ही कच्ची थी, पर तब के साथी पक्के थे।
अपवाद रूप से अगर कभी, रूठे भी तो क्या रूठे
दो चार घड़ी का किस्सा था, फिर ज्यों के त्यों हो जाते थे।
वह उम्र भले ही कच्ची थी, पर तब के साथी पक्के थे।
कुछ की थी आयु अधिक हमसे, कुछ समवय थे कुछ छोटे थे
पर उससे अंतर क्या पड़ता, जब ह्रदय हमारे मिलते थे।
वह उम्र भले ही कच्ची थी, पर तब के साथी पक्के थे।
यह याद हमारी पूँजी है, जिसको हम भूल नहीं सकते
हम में मौलिकता होती थी, ‘फेक’ नहीं हम होते थे।
वह उम्र भले ही कच्ची थी, पर तब के साथी पक्के थे।
वह स्वप्न सरीखी दुनिया थी, फिर भी संगीन हकीकत थी
अब वैसे लोग नहीं मिलते, जैसे की पहले होते थे।
वह उम्र भले ही कच्ची थी, पर तब के साथी पक्के थे।

                                       – ज्ञान प्रकाश सिंह

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