समानान्तर रेखाओं से तो
तिर्यक रेखायें अच्छी है
जो आपस में टकराती हैं
लड़ती हैं तथा झगड़ती हैं
और कभी टैन्जेंट हुईं तो
कोमलता से छूती हैं ।
समानान्तर रेखाओं का क्या
साथ साथ चलती अवश्य हैं
पर आपस में कभी नहीं मिलती
जैसे कि दो रेल पटरियाँ
रहती हैं वे साथ साथ
और बोझ उठातीं एक साथ
जब ट्रेन गुज़रती है उनपर
तो चिल्लातीं दोनों मिलकर
है एक अलग अस्तित्वहीन
रहना पड़ता है युगल रूप
फिर भी हैं कितनी एकाकी
आपस में कभी नहीं मिलतीं
यही नियति निर्धारित उनकी।
इसीलिए तो कहता हूँ
तिर्यक रेखायें अच्छी हैं
जो लड़ती और झगड़ती हैं
पर कोमलता से छूती हैं।
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